Sunday, May 16, 2010

जातिवादी हत्याओं के खिलाफ आन्दोलन में हम साथ हैं

झारखंड राज्य के कोडरमा में निरुपमा पाठक की हत्या जैसी घटनाएं पूरे देश में बड़ी तादाद में घट रही हैं। इस तरह की घटनाएं विभिन्न रूपों में न जाने कितने वर्षो से जारी हैं। 1990 के पहले दो अलग अलग जाति की लड़की और लड़के के एक दूसरे के साथ जीने का फैसला करने पर पिता और उसके परिवार के सदस्यों के द्वारा उनकी हत्या करने की एक दो घटनाएं ही सामने आती थी। लेकिन खबरों के नहीं आने का अर्थ ये नहीं है कि ऐसी घटनाएं नहीं होती थीं। हत्याएं कम होती थीं तो आत्महत्याएं ज्यादा होती थीं। आंकड़े जुटाये जा सकते हैं कि कितनी लड़कियों ने जहर खाकर, कुएं में कूदकर या गले में फंदा लगाकर आत्महत्याएं की होगी। पहले कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। उनके पढ़ने की मनाही थी। पति की मौत के बाद सती बनने का दबाव था। पति की मौत के बाद लड़की की शादी की इजाजत नहीं थी। दहेज के नाम पर हत्या कर दी जाती थी। निश्चित तौर पर समाज में वर्चस्व रखने वाली जातियों और वर्चस्ववादी संस्कृति को ढोने वालों के बीच ये समस्या बनी हुई थी। इसके खिलाफ सुधार के आंदोलन किये गये। स्थितियों में बदलाव आया लेकिन वह समाप्त नहीं हुआ। विचार के रूप में उसके अवशेष अब भी बने हुए हैं।

समाज में स्त्रियों को निचले व दूसरे दर्जे में रखा जाता है। पुरुष सत्ता ने अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए धर्म और जाति का ढांचा तैयार किया है। बल्कि यूं भी कहा जा सकता है कि इन ढांचों का निर्माण इस तरह से किया गया है कि समाज पर वर्चस्व रखने वाला पुरुष समूह तो सर्वश्रेष्ठ बना रहे और समाज के बाकी के हिस्सों में एक दूसरे को नीचा, कमजोर, दोयम दर्जे, यानी अपने से छोटा मानने का विचार अपनी जड़े जमा लें। इसीलिए भारतीय समाज में ये देखने को मिलेगा कि यहां वर्ण के रूप में वर्ण एक दूसरे से नीचे या श्रेष्ठ है। जातियों में दूसरी जातियां एक दूसरे से नीची या श्रेष्ठ है।

निरुपमा पाठक के पिता ने संविधान की जगह पर सनातन धर्म को श्रेष्ठ बताया है। उन्‍होंने अपनी बेटी के नाम लिखे पत्र में कायस्थ जाति के प्रियभांशु को निम्न वर्ण का बताया है। जबकि भारतीय समाज में कायस्थों को सवर्ण माना जाता है। हर जाति में भी एक दूसरे से श्रेष्ठ या नीचे वाले गोत्र हैं। इस तरह से एक दूसरे को एक समान महसूस करने और उस तरह से व्यवहार करने का विचार ही दिल दिमाग में जगह नहीं बना पाता है। ये विचार इतना कट्टर है कि इस पर वर्चस्व रखने वाला समूह उसे बचाने के लिए हर तरह की गुलामी भी स्वीकार कर लेने को तैयार हो जाता है। किसी भी तरह की नृशंसता पर उतारू हो जाता है। निरुपमा पाठक की अपने ही परिवार में हत्या इसका एक उदाहरण भर है।

27 मार्च 1991 को मथुरा जिले के मेहराना गांव में रोशनी, रामकिशन और बृजेंद्र को पेड़ से सरेआम लटका कर मार दिया गया था। इन तीनों को लटका कर मारने का फैसला गांव के दबंगों के प्रभाव में बुलायी गयी पंचायत में लिया गया था। रोशनी जाट थी और बृजेंद्र दलित था। राम किशन अपने दोस्त रोशनी और बृजेंद्र के रिश्ते में मददगार था। इस घटना के बाद कई राजनेता मेहराना गये थे। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने भी उस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। खुद मीरा कुमार की भी शादी अंतर्जातीय है। उनकी शादी कोइरी जाति में जन्मे व्यक्ति से हुई है। ये जाति बिहार में पिछड़ी जाति मानी जाती है। मेहराना की घटना के बाद शोरशराबा मचने पर तीन युवाओं को पेड़ पर लटकाकर मारने वालों में कुछेक को पुलिस ने पकड़ा भी। लेकिन ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगायी जा सकी।

पुलिस में काम करने वाले लोग भी खाप पंचायतों में बैठने वाले लोगों के बीच के या निरुपमा के पिता के कट्टरपंथी दिमाग के ही होते हैं। उनके भी विचार ऐसी घटनाओं को संविधान विरोधी और लोकतंत्र विरोधी मानने के लिए तैयार नहीं होता है। यही हाल कचहरियों और न्यायालयों में न्याय की कुर्सी पर बैठने वालों का भी है। मीडिया में काम करने वालों का भी है। और इन सबसे बढ़कर वोट की राजनीति करने वाले नेता हैं। वे तो समाज पर वर्चस्व रखने वालों के पिछ्लग्गू की तरह काम करते हैं। जैसे हमें अभी हरियाणा के युवा, उद्योगपति और कांग्रेस के सांसद नवीन जिंदल के रूप में देखने को मिल रहा है। वे हरियाणा में खाप पंचायतों के साथ होने की कसमें खा रहे हैं। इसीलिए मेहराना की घटना के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी शादी का फैसला करने वाले लड़के लड़कियों के मारे जाने की खबरें बड़ी तेजी के साथ सामने आयी हैं। लड़के के पिता मां इसीलिए अपने पुत्र की शादी उसकी पसंद की लड़की से करने को तैयार नहीं होते हैं क्योंकि लड़की उनकी जाति की नहीं होती है।

संविधान अठारह वर्ष की उम्र पार करने वाले को वयस्क मानता है और उसे देश में सरकार बनाने के लिए वोट देने का अधिकार देता है। वयस्‍क होने का अर्थ ये होता है कि लड़का और लड़की अपने स्तर से फैसला कर सकें। लेकिन पिता की जाति और धर्म लड़के या लड़की को अपनी पसंद से जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं देता है। महज इन बीस वर्षों में लड़के और लड़कियों के अपने मां बाप के द्वारा मारे जाने की सैकड़ों घटनाएं सामने आ चुकी हैं। आत्महत्याओं की भी तादाद कम नहीं है। लेकिन इस बीच एक तरह की नयी घटना के रूप में लड़कियों की तस्वीरें समाचार पत्रों में छपने की आयी हैं। हर दिन किसी न किसी अखबार में किसी न किसी लड़की के घर से भाग जाने या अपहरण किये जाने की जानकारी देने वाला विज्ञापन पुलिस विभाग द्वारा प्रकाशित कराया जाता है। उसमें लड़की के लापता होने की जानकारी होती है। उसमें ये संकेत मिलता है कि वह लड़की घर से भाग गयी है। या फिर लड़की जिसे पसंद करती है उस लड़के के द्वारा उसका अपहरण करने की जानकारी दी जाती है। अपनी पसंद से अपने जीवन साथी का चुनाव करने वाले लड़के बड़ी तादाद में अपहरणकर्ता के रूप में अपराधी करार दिये गये हैं।

निरुपमा पाठक की हत्या महज एक नयी और घटना हैं। इसके बाद भी कई घटनाएं सामने आयी हैं और निरंतर आ रही हैं। यह महिलाओं की आजादी के मसले पर यह एक नयी तरह के आंदोलन का दौर है। यदि अतीत से अब तक की घटनाओं पर गौर करें तो महिलाओं की आजादी में सबसे बड़ी बाधा जाति और धर्म बना हुआ है। लिहाजा पहला काम तो हमें ये करना चाहिए कि इस तरह की हत्याओं को अंग्रेजी के शब्द ऑनर के विशेषण से संबोधित करना बंद करना चाहिए। इससे इस तरह की घटनाओं के सांस्कृतिक कारणों को समझने में उलझन होती है। ये हत्याएं जातिवादी हत्याएं हैं। इन्हें जातिवादी हत्या के रूप में संबोधित करना चाहिए। दूसरे ये बात भी समझना चाहिए कि खाप पंचायतें न केवल महिलाओं के विरोध में तरह तरह के फैसले करती हैं बल्कि वही पंचायतें दलितों के खिलाफ भी उसी तरह से फैसले लेती हैं। दलितों को भी जलाने और मारने की घटनाएं हमारे सामने आती हैं।

हरियाणा के गोहाना में दलित मोहल्‍ले पर हमला और दलितों के घरों को जलाने जैसी घटनाएं हमारे सामने इस रूप में सामने आयी हैं कि वह पुलिस की मौजूदगी में हुई। खाप पंचायतों की मानसिकता वैसे हर परिवार में बनी हुई है जो दूसरी जाति और दूसरे धर्म से नफरत करते हैं। निरुपमा की हत्या के मामले को लेकर जगह जगह प्रदर्शन और दूसरे कार्यक्रम हो रहे हैं। पहले भी ऐसी कई घटनाओं को लेकर विरोध कार्यक्रम हुए हैं। लेकिन हजारों वर्षों से भारतीय समाज को नुकसान पहुंचाने वाली इस तरह की मानसिकता के खिलाफ निरंतर आंदोलन चलाने की जरूरत है। ज्यादा से ज्यादा अंतर्जातीय व अंतर्धर्म में शादी विवाह को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। हमें ये समझना होगा कि जातिवादी मानसिकता एक तरफ अपने से कमजोर समझी जाने वाली जातियों के खिलाफ हमलावर होती है तो दूसरी तरफ उसी जातिवादी मानसिकता से वह अपने घरों के बेटे-बेटियों को भी उत्पीड़‍ित करती है। उसे आधुनिक बनने से रोकती है। उसे संविधान से अपने फैसले लेने के चुनाव के अधिकार का हनन करती है। उसे जातिवादीविहीन और धर्मनिरपेक्ष समाज बनाने से रोकती है। हमें इस लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए। राजनीतिक पार्टियां वोट की राजनीति की वजह से चुप्पी साधे हुए हैं। जबकि ये समस्या राजनीतिक परिवारों के बेटे बेटियों के समक्ष भी आती है। कई राजनीतिक परिवारों में भी इस तरह की हत्याएं हो चुकी हैं लेकिन वे अपने राजनीतिक प्रभाव के कारण बच निकले हैं।

लिहाजा ये हमारी जिम्मेदारी है कि युवा वर्ग के सदस्य आजादी से अपने जीवन साथी का चुनाव कर सकें। हमें समाज में उन तमाम शक्तियों और विचारों से लड़ने के लिए खुद को तैयार करना होगा जो देश के युवा वर्ग को जातिवादी और धर्म के दायरे में बांधे रखने के हरसंभव कोशिश कर रही है। शिक्षण संस्थानों में लगातार इस विषय पर हमें गोष्ठियां आयोजित करनी चाहिए। पर्चे वितरित करने चाहिए। युवाओं की हत्या से युवाओं के बड़े वर्ग को डराने धमकाने की जो कोशिश की जाती है, उस डर और भय को दूर कर उन्हें समझदारी से फैसले लेने के पक्ष में माहौल बनाने की हमारी जिम्मेदारी है। ये एक बड़े समाज सुधार के आंदोलन की आहट है। इसे हमें सुनना चाहिए और उसी दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

अनिल चमड़िया, विजय प्रताप (9015898445), सपना चमड़िया, ऋषि कुमार सिंह, देवाशीष प्रसून, चंद्रिका, अनिल, अवनीश, शाहआलम, नवीन, अरुण उरांव, प्रबुद्ध गौतम, राजीव यादव, शाहनवाज आलम, विवेक मिश्रा, रवि राव, लक्षमण, अर्चना महतो, पूर्णिमा, मिथिलेश प्रियदर्शी, दिनेश मुरार एवं अन्य साथी

जातिवादी हत्याओ के खिलाफ आंदोलन में हम साथ है

                प्रेस विज्ञप्ति

पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या के मामले में शनिवार 15 मई को प्रेस क्लब की तरफ से आयोजित प्रोटेस्ट मार्च में जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) के साथियो ने भी हिस्सा लिया। इस मार्च में शामिल होने के लिए जेयूसीएस से जुड़े महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्विद्यालय वर्धा, माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्विद्यालय भोपाल, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्विद्यालय से आए छात्रों ने भी अपना विरोध दर्ज किया।
जेयूसीएस ने जातिवादी हत्याओ के खिलाफ आंदोलन में हम साथ है के पर्चे भी वितरीत किए। जेयूसीएस के नवीन कुमार ने कहा कि हमारा ये अभियान आगे भी चलता रहेगा। उन्होनें कहा कि जेयूसीएस विभिन्न विश्विद्यालयों में छात्रों के बीच पर्चे वितरीत कर देश के कोने-कोने में हो रही हत्याओं के खिलाफ जन समर्थन जुटाएगा। जेयूसीएस से जुड़े वर्धा विश्विद्यालय के शोधार्था लक्षमण प्रसाद ने कहा कि वर्धा में भी जातिवादी हत्याओं के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा। संगठन के ही अवनीश राय ने कहा कि ऐसी घटनाओ का होना और फिर जन प्रतिनिधियों और सरकारी तंत्र द्वारा इन पर ढुलमुल रवैया रखना लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। ऋषि कुमार सिंह ने कहा कि देश में जाति के नाम पर हो रही हत्याओं के खिलाफ इस आंदोलन में देश के युवाओं को जेयूसीएस का समर्थन करना चाहिए। ताकि लोगों का लोकतंत्र और न्याय प्रणाली पर विश्वास बना रहे।     

रजनी को भी न्याय मिले...
  जेयूसीएस ने शनिवार को इलाहाबाद में अपनें ही परिवार द्वारा मार डाली गई छात्रा रजनी को भी न्याय दिलाने की मांग की, संगठन ने शनिवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि देश के कोने-कोने में रोजाना ऐसी घटनाए हो रही है और सरकार इस पर रोक लगानें के लिए जल्द से जल्द कदम उठानें चाहिए। ऐसी घटनाओं से देश के युवाओं को जीनें के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।

द्वारा
ऋषि कुमार सिंह 

जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस)
ई-36 गणेश नगर, नई दिल्ली 92 की तरफ से जारी।




Friday, May 14, 2010

"निरूपमा को न्याय" प्रेस क्लब से गृह मंत्रालय तक प्रोटेस्ट मार्च

साथियों
      "निरूपमा को न्याय" अभियान के तहत शनिवार (15 मई) को प्रेस क्लब आफ इंडिया से गृह मंत्रालय तक एक प्रोटेस्ट मार्च निकाला जाएगा। जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) आप सभी से अपील करता है कि इस प्रोटेस्ट मार्च का हिस्सा बने और इसे मजबूत बनाएँ ।
      आप सभी से अपील है कि अपने व्यस्त समय से कुछ वक्त निकाल कर प्रोटेस्ट मार्च में पहुंचे, ताकि पत्रकार निरूपमा को याद करते हुए उन्हें न्याय दिलाने की मांग को और मजबूती से उठाया जा सके।

दिनांक- 15 मई, 2010,  शनिवार        
स्थान- प्रेस क्लब आफ इंडिया
समय- शाम 5.30 बजे

निवेदक

जर्नलिस्ट यूनियन फार सिविल सोसाईटी

Wednesday, May 12, 2010

झारखण्ड सरकार और कोडरमा पुलिस के खिलाफ झारखण्ड भवन पर प्रदर्शन


 #  निरुपमा के हत्यारों को बचाने की निंदा

#  छात्रपत्रकार और महिला संगठन ने किया प्रदर्शन 

नई दिल्ली, 12 मई  
युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या के मामले में झारखण्ड पुलिस की लीपापोती और प्रियभांशु रंजन पर लादे गए फर्जी मुकदमों के खिलाफ बुधवार को जेयूसीएस ( जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी)आइसा (आल इंडिया स्टुडेंट्स एसोसिएशन) और एपवा (आल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमेन एसोसिएशन) ने संयुक्त रूप से झारखण्ड भवन पर प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने झारखण्ड और केंद्र सरकार से इस मामले की उच्च स्तरीय जाँच की मांग की.
प्रदर्शनकारियों ने झारखण्ड भवन के गेट पर उन्हें रोकने के प्रयास को विफल करते हुए अन्दर घुस कर सभा की. प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए आइसा के महसचिव रवि राय ने कहा की पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या के दो हफ्ते बाद भी झारखण्ड पुलिस दोषिओं  को गिरफ्तार नहीं कर सकी है और हत्यारों को बचाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा की अगर झारखण्ड सरकार इस मामले में हत्यारों को ऐसे ही बचाती रही तो आइसा निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए अनिश्चितकालीन संघर्ष करेगी. दिल्ली राज्य सचिव राजन पांडे ने कहा की सनातनी  और परम्पराओं के नाम पर युवाओं की हत्या बर्दास्त नहीं की जाएगी. निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए झारखण्ड सरकार से सीधी लड़ाई के लिए भी तैयार हैं.
एपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने कहा की एक तरफ जातीय अस्मिता के नाम पर निरुपमा जैसी युवा लड़कियों की हत्या हो रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के कथित युवा ब्रिगेड के नेता नवीन जिंदल खाप पंचायतों और उनके फैसलों का गुणगान कर रहे हैं. उन्होंने कहा की जो लोग ऐसी हत्यों को गाँव-देहात की समस्या मानकर देखते हैं जिंदल जैसे उद्योगपतियों का यह बयान उनके लिए आइना है.
जेयूसीएस से जुड़े स्वतंत्र पत्रकार विजय प्रताप ने कहा की निरुपमा की हत्या कोई आनर किलिंग नहीं हैबल्कि यह उन संवैधानिक अधिकारों की भी हत्या है  जिसके अंतर्गत भारतीय संविधान उन्हें इच्छानुसार जीने और जीवन साथी चुनने का अधिकार देता है. उन्होंने कहा की देश के कई हिस्सों में रोजाना ऐसी घटनाएँ हो रही है जिसमे अपनी पसंद के अनुसार जीवन साथी चुनने वालों को जातिधर्म या पारिवारिक प्रतिष्ठा के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है. उन्होंने राजनीतिक दलों से भी इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की.
भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता शिक्षण से जुड़े भूपेन सिंह ने भी प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया. उन्होंने कहा की यह केवल एक निरुपमा की लड़ाई नहीं हैबल्कि उन तमाम निरुपमाओं की लड़ाई है जो जाति या गोत्र के नाम पर मार दी जा रही हैं.
जेयूसीएसआइसा और एपवा के एक प्रतिनिधि मंडल ने झारखण्ड के रेजिडेंट कमिश्नर से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा. इसमें निरुपमा के हत्यारों तुरंत गिरफ्तार करने,प्रियभांशु पर लादे गए फर्जी मुकदमो को वापस लेने की मांग और ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए विशेष कानून बनाने की मांग शामिल है.

द्वारा 
ऋषि कुमार सिंह,
09313129941
जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) ई-36,गणेशनगर,नई दिल्ली-92 की तरफ से जारी

Monday, May 10, 2010

निरुपमा को न्याय दो !

साथियों,

पत्रकार निरुपमा पाठक की ऑनर किलिंग के विरोध में सोमवार (१० मई) को जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में ओंल इंडिया स्टुडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) और जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) की तरफ से एक पब्लिक मीटिंग रखी गई है।
आप सभी से अपील है कि अपने व्यस्त समय से कुछ वक्त निकाल कर बैठक में पहुंचे। ताकि पत्रकार निरूपमा को याद करते हुए उन्हें न्याय दिलाने के लिए एकजुट हों सकें।

दिनांक- 10 मई, 2010, सोमवार
स्थान- कावेरी होस्टल मेस; जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय
समय- रात 9.30 बजे
वक्ता -

आनंद प्रधान - एसोसिएट प्रोफ़ेसर, भारतीय जनसंचार संस्थान
उमा चक्रवर्ती - इतिहासकार, दिल्ली विश्वविद्यालय

- निवेदक

ओंल इंडिया स्टुडेंट्स एसोसिएशन (आइसा)
जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस)

सम्पर्क -

सुचेता डे - 09868383692
शेफालिका शेखर - 09868336118
रनवीर-09990476926
हिमांशु-098991323387
विजय प्रताप-09015898445
ऋषि कुमार सिंह-०९३१३१२९९४१

Thursday, May 6, 2010

संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए चलेगा आंदोलन - जेयूसीएस


नई दिल्ली 6 मई वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने कहा कि कानून महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि उसकी व्याख्या महत्वपूर्ण होती है। हम एक ऐसे समय में हैं जब कानून की व्य़ाख्या समाज के एक विशेष तबके के हितों के पक्ष में की जा रही है। वे गुरूवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में आयोजित एक बैठक को संबोधित कर रहे थे।


 बैठक का आयोजन निरूपमा पाठक की याद में जर्नलिस्ट यूनियन फार सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) व जामिया के छात्रों की तरफ से किया गया था। निरूपमा की पिछले दिनो उनके गृहनगर कोडरमा में विजातिय लड़के से शादी के फैसले के बाद हत्या कर दी गयी थी। 

       अनिल चमड़िया ने कहा कि नब्बे के दशक के बाद ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति बढी है। आए दिन लड़कियों के भागने,उनके अपहरण होने और अंतर्जातीय विवाह की खबरें आती रहती हैं। इस तरह की शादी करने वाले लड़के लड़कियां अपनी सुरक्षा के लिए अदालतों के चक्कर काटते रहते हैं। अदालतें कुछ मामलों में तो सुरक्षा का प्रावधान कर देती हैं लेकिन यह समस्या का हल नहीं है।

बैठक को संबोधित करते हुए पत्रकार और भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता शिक्षा से जुड़े दिलीप मंडल ने कहा कि वर्तमान में पितृसत्तात्मक समाज का आधुनिकता से टकराव चरम पर पहुंच गया है। इस समय जाति व्यवस्था भयंकर दबाव के दौर से गुजर रही है, जिसका परिणाम इस तरह की घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है।


 माता पिता अपनी संतानो को उच्च शिक्षा और जीवन के बेहतर विकल्प तो मुहैया करा रहे हैं लेकिन जब वे जीवन साथी चुनने के स्तर पर जाति या धर्म के बंधन को तोड़ने की कोशिश करते हैं तो उन्हें सनातन धर्म का हवाला देकर पीछे खींचने की कोशिश की जाती है, जिसका नतीजा किसी एक की मौत या फिर खाप पंचायतों के बर्बर फैसलों के रूप में दिखाई देता है।

     इससे पहले छात्रों ने निरूपमा पाठक को याद करते हुए भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सरकार से कड़े कदम उठाने की मांग की।


     जेयूसीएस के अवनीश राय ने कहा कि संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए लंबा आंदोलन चलाया जाएगा। जामिया के छात्र गुफरान ने कहा कि संविधान सभी को अपनी इच्छा से जीवनसाथी चुनने का अधिकार देता है लेकिन युवाओं को इस अधिकार की रक्षा के लिए हाइकोर्ट की शरण लेनी पड़ती है।
     
      इस मौके पर अकरम अख्तर ने कहा कि यह आनर किलिंग नहीं बल्कि हारर कीलिंग है। अब जरूरत इस बात की है कि इस संबंध में इस तरह का आंदोलन खड़ा किया जाए ताकि सरकार इस संबंध में कोई कानून बनाने को बाध्य हो।  बैठक में भारतीय जनसंचार संस्थान और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्रों नें भी अपनी बात रखी।




भवदीय





शाहआलम, विजय प्रताप, अवनीश राय,ऋषि कुमार सिंह, नवीन कुमार, चंदन शर्मा,  अभिषेक रंजन सिंह, अरुण कुमार उरांव, प्रबुद्ध गौतम, अर्चना महतो, सौम्या झा, राजीव यादव, शाह आलम, विवेक मिश्रा, रवि राव, प्रिया मिश्रा, शाहनवाज़ आलम, राकेश, लक्ष्मण प्रसाद, अनिल, देवाशीष प्रसून, चंद्रीका, संदीप, प्रवीण मालवीय, ओम नागर, श्वेता सिंह, अलका देवी, नाज़िया, पंकज उपाध्याय, तारिक़, मसीहुद्दीन संजरी, राघवेंद्र प्रताप सिंह व अन्य।

द्वारा
  विजय प्रताप
  सम्पर्क-09015898445,09313129941
     ई-मेलः    jucsindia@gmail.com

जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी(जेयूसीएस) ई-36,गणेशनगर,नई दिल्ली-92 की तरफ से जारी

Wednesday, May 5, 2010

पत्रकार निरुपमा पाठक की याद में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बैठक

साथियों,
पत्रकार निरुपमा पाठक की प्रतिष्ठा के लिए की गई हत्या के विरोध में छेड़े गये अभियान के तहत गुरूवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों की तरफ से एक बैठक रखी गई है। बैठक का मकसद निरुपमा को याद करते हुए ऐसे उपायों पर चर्चा करना है जिससे भविष्य में और युवाओं के साथ ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न हो।
आप सभी से अपील है कि अपने व्यस्त समय से कुछ वक्त निकाल कर इस अभियान से जुड़ें ताकि हम निरूपमा को न्याय दिलाते हुए सच्ची श्रद्धांजलि दे सके।

दिनांक- 6 मई, 2010 ,गुरूवार
स्थान- नेहरू गेस्ट हाउस लॉन, जामिया मिल्लिया इस्लामिया
समय- शाम 5.00 बजे

निवेदक
जामिया मिल्लिया के छात्र
जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी(जेयूसीएस)
आईआईएमसी के पूर्व छात्र

Monday, May 3, 2010

पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग

                            प्रेस विज्ञप्ति


 ऑनर किलिंग के खिलाफ बने कानूनःजेयूसीएस

नई दिल्ली, 3 मई। जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी(जेयूसीएस) ने युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या के दोषियों को शीघ्र व कड़ी सजा दिलाने के लिए उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। जेयूसीएस ने सोमवार को निरुपमा के साथी पत्रकारों के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा। साथ ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और प्रेस परिषद को भी पत्र भेजकर उनसे सीधे हस्तक्षेप की मांग की है। गौरतलब है कि अंग्रेजी दैनिक बिजनेस स्टैंडर्ड की पत्रकार व भारतीय जनसंचार संस्थान(आईआईएमसी) की पूर्व छात्रा निरुपमा पाठक की 29 अप्रैल को उनके गृहनगर झारखंड के कोडरमा में हत्या कर दी गई थी।
   जेयूसीएस के सदस्यों ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि पत्रकार निरुपमा की ऑनर किलिंग,साठ साल के लोकतंत्रपन को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज अभी भी अर्धसामंती युग में है। जहां खाप पंचायतें समाज और प्रतिष्ठा के नाम पर हत्याएं करवा रही हैं। संगठन के ऋषि कुमार सिंह ने कहा कि निरूपमा को न्याय दिलाने के लिए पूरे मामले की उच्चस्तरीय और स्वतंत्र समिति द्वारा जांच करायी जानी चाहिए। किसी एक के बजाय हत्या में संलिप्त सभी दोषियों को कड़ी सजा मिले। संगठन के नवीन कुमार ने कहा कि देश में आये दिन समाज और प्रतिष्ठा के नाम पर बहुतेरी निरुपमाओं की हत्याएं हो रही हैं,लिहाजा झारखंड में महिलाओं की रक्षा के लिए बने डायन एक्ट की तर्ज पर अलग से ऑनर किलिंग के खिलाफ कानून बनाया जाये। उन्होंने कहा कि हरियाणा व अन्य राज्यों में लगने वाली जातिगत पंचायतों पर प्रतिबंध लगे। जेयूसीएस के विजय प्रताप व अभिषेक रंजन सिंह ने खाप पंचायतों को प्रश्रय देने वाले राजनीतिक दलों की निंदा की और कहा कि यही दल इस तरह की सामाजिक समस्याओं को राजनैतिक मुद्दा बनाने के बजाय उसका राजनैतिक दोहन करते हैं। लिहाजा यह समस्या आजादी के बाद भी भारतीय समाज में बनी हुई है। वहीं अर्चना महतो ने कहा कि ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं समाज के सभ्य होने पर सवालिया निशान हैं।
    जेयूसीएस के चंदन शर्मा व अरूण कुमार उरांव ने साथी पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान के शुरूआत की घोषणा की। इसके तहत पत्रकारिता के छात्रों और पत्रकारों के बीच हस्ताक्षर अभियान शुरू किया गया है। जेयूसीएस ने यह भी तय किया है जब तक निरुपमा के दोषियों को सजा नहीं हो जाती है,तब तक संगठन का यह अभियान चलता रहेगा। बैठक में अवनीश कुमार,प्रबुद्ध गौतम, सौम्या झा, पूर्णिमा, शाह आलम,विवेक, रवि राव, अभिमन्यु सिंह,श्वेता सिंह,अलका देवी ने भाग लिया।

द्वारा
  विजय प्रताप
  सम्पर्क-09015898445,09313129941
     ई-मेलः    jucsindia@gmail.com

जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी(जेयूसीएस) ई-36,गणेशनगर,नई दिल्ली-92 की तरफ से जारी

निरुपमा पाठक हत्या मामले में मानवाधिकार आयोग को पत्र

प्रति
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
फरीदकोट हाउस,नई दिल्ली


विषयःपत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या की उच्चस्तरीय जांच की मांग

महोदय,
      युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की 29 अप्रैल को उसके गृहनगर झारखंड के कोडरमा में हत्या कर दी गई थी। पोस्टमार्टम में इस बात के स्पष्ट सबूत हैं कि उसकी हत्या गला घुटने से हुई है। जबकि निरुपमा के परिजनों ने शुरूआती दौर में निरुपमा की मौत की वजह करंट लगना बतायी थी और स्थानीय पुलिस प्रथम दृष्टया फांसी लगाकर आत्महत्या की बात कही थी। निरुपमा के कमरे से पुलिस ने एक सुसाइड नोट भी बरामद किया था। 22 वर्षीय निरुपमा पाठक पुत्री धर्मेंद्र पाठक देश के प्रतिष्ठित भारतीय जनसंचार संस्थान(आईआईएमसी) के रेडियो-टेलीविजन पत्रकारिता वर्ष 2008-09 की छात्रा थी और पिछले एक वर्ष से दिल्ली स्थित अंग्रेजी दैनिक बिजनेस स्टैंडर्ड में कार्यरत थी।
   निरुपमा की हत्या का मामला ऑनर किलिंग का है। निरुपमा के मित्रों का कहना है कि उसके घरवालों को निरुपमा के विजातीय लड़के से विवाह करने के फैसले पर ऐतराज था। घरवालों ने निरुपमा को एक षडयंत्र के तहत मां के बीमार  होने की झूठी सूचना देकर घर बुला लिया। निरुपमा को 28 अप्रैल को वापस दिल्ली लौटना था, लेकिन घरवालों ने उसे दिल्ली आने से जबदस्ती रोका। इस दौरान निरुपमा को किसी से भी सम्पर्क नहीं करने दिया। 29 अप्रैल को निरुपमा ने सहपाठी रहे पत्रकार प्रियभांशु को बताया कि यह हम दोनों की आखिरी बातचीत है, परिवारवाले मुझे दिल्ली नहीं आने दे रहे हैं। भैया के दोस्त मुझपर नज़र बनाए हुए हैं।(देखें-दैनिक हिंदुस्तान,03मई,10) उसी दिन (29 अप्रैल 2010) निरुपमा अपने कमरे में मृत पायी गई थी।
    लिहाजा हम आयोग से ऑनर किलिंग के इस मामले में सीधे हस्तक्षेप करने की मांग करते हैं। ताकि निरुपमा को न्याय मिल सके। साथ ही हम आयोग से यह भी मांग करते है कि देश में जिस तरह सामाजिक परम्परा की दुहाई देकर या प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाकर युवक-युवतियों की हत्या की जा रही है, उस पर अंकुश लगाने के लिए आयोग और राज्य सरकारों को निर्देशित करे।
  समाज में युवाओं को मनपसंद के जीवनसाथी चुनने के अधिकार की रक्षा की जाये और ऐसे युवाओं को पूरी सुरक्षा मुहैय्या करायी जाये, ताकि किसी और निरुपमा पाठक की ऑनर किलिंग के नाम पर हत्या ना हो। इसके लिए देश में ऑनर किलिंग को रोकने के लिए एक कड़ा कानून बनाया जाना चाहिए।



                                                                          भवदीय
ऋषि कुमार सिंह, विजय प्रताप, नवीन कुमार, चंदन शर्मा, अवनीश राय, अभिषेक रंजन सिंह, अरुण कुमार उरांव, प्रबुद्ध गौतम, अर्चना महतो, सौम्या झा, राजीव यादव, शाह आलम, विवेक मिश्रा, रवि राव, प्रिया मिश्रा, शाहनवाज़ आलम, राकेश, लक्ष्मण प्रसाद, अनिल, देवाशीष प्रसून, चंद्रीका, संदीप, प्रवीण मालवीय, ओम नागर, श्वेता सिंह, अलका देवी, नाज़िया, पंकज उपाध्याय, तारिक़, मसीहुद्दीन संजरी, राघवेंद्र प्रताप सिंह व अन्य।

जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी(जेयूसीएस) ई-36,गणेशनगर,नई दिल्ली-92 की तरफ से जारी