Monday, July 26, 2010

एक और हत्या...



 साथियों,
    सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या की फेहरिस्त में एक और नाम - अमित जेठवा। 20 जुलाई को अहमदाबाद में गुजरात हाईकोर्ट के नजदीक उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। अमित सूचना अधिकार कानून के माध्यम से तमाम मामलों में धांधलियों को सामने ला रहे थे। वे सूचना अधिकार के तहत गिर के जंगलों में अवैध खनन में हुई धांधलियों को सामने ला रहे थे। उनकी इस मुहिम के चलते एक सीमेंट कंपनी को काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कोडीनार लोकसभा क्षेत्र के भाजपा सांसद दीनू भाई सोलंकी के ख़िलाफ़ भी अवैध खनन की शिकायत की थी,जिसकी वजह से सांसद पर एक बार 40 लाख रुपए का जुर्माना भी किया गया था। अमित जेठवा ने पिछले चुनाव में दीनू भाई सोलंकी के ख़िलाफ़ कोडीनार लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी की तरह चुनाव भी लड़ा था। डेढ़ साल पहले भी अमित जेठवा पर एक घातक हुआ था,जिसके लिए उन्होंने दीनू भाई सोलंकी पर आरोप लगाया था। अमित जेठवा की हत्या के बाद उनके पिता ने इसके पीछे बीजेपी सांसद दीनू भाई सोलंकी का हाथ होने का आरोप लगाया है।
      इससे पहले जनवरी में पुणे के सतीश शेट्टी की हत्या भी आरटीआई लगाने की वजह से हुई थी। सतीश शेट्टी ने सूचना अधिकार के जरिए करोड़ों के जमीन घोटाले को उजागर किया था। यहीं से वे पुणे के भू-माफियाओं की नजर में आ गये। लेकिन सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पायी। बेगूसराय के शशिधर मिश्र, कोल्हापुर के दत्ता पाटिल, बीड़ के विट्ठल गीते, कृष्णानगर के शोला रंगाराव, बदलापुर के अरूण सावंत व अहमदाबाद के विश्राम लक्ष्मण भी कुछ ऐसे नाम हैं, जो सूचना अधिकार की भेंट चढ़ चुके हैं।
   हत्या करने के अलावा भी कई ऐसे मामले हैं,जिसमें सूचना कार्यकर्ताओं को परेशान किया जाता रहा है। बिहार में सेना से रिटायर हुए चंद्रदीप सिंह ने 12 दिसंबर 2007 को दानापुर के सहायक पुलिस अधीक्षक से आरटीआई एक्ट के तहत अपने बेटे और बेटी की आठ वर्ष पूर्व की गई हत्या के मामले में जांच की प्रगति रिपोर्ट जाननी चाही थी। पुलिस अधीक्षक ने उन्हें जानकारी तो मुहैया नहीं कराई, उल्टे उन्हें 16 मार्च 2008 को बलात्कार के एक झूठे मामले में फंसा दिया। लिहाजा अप्रैल से मई तक करीब एक महीने उन्हें जेल में बिताने पड़े। बक्सर के शिवप्रकाश राय ने सितंबर 2006 में एक आरटीआई के जरिए बैंको से यह जानकारी चाही थी कि प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत कितना कर्ज दिया जा रहा है और उसमें सरकारी रियायत कितनी है। आरटीआई दाखिल करने के बाद उन्हें जिला कलक्टर के दफ्तर बुलाया गया और कहा गया कि वे उस कागज पर दस्तखत कर दें,जिस पर लिखा गया था कि मांगी गई सूचना मिल गई है। दस्तखत करने से इंकार किया तो उन्हें सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में जेल भेज दिया गया।
   महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में एक दलित छात्र राहुल ने पीएचडी में अपने नामांकन के नहीं होने से संबंधित जानकारियां मांगी,तो उससे माफी मांगने के लिए मजबूर कर दिया गया। मुरादाबाद के सलीम बेग ने होमगार्ड विभाग से प्रदेश में होमगार्डों की तैनाती और संख्या से संबंधित कुछ सवाल जानने चाहे थे। उनसे सूचना की कीमत के रूप में 7 लाख 68 हजार 284 रूपये जमा करने को कहा गया। जाहिर है प्रशानिक मशीनरी न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगीकी कहावत पर सूचना देने की नई शर्तें लाद रही है।
   सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा (2) में ही स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सभी लोक अधिकारी लगातार सूचनाओं को विभिन्न माध्यमों से जनता तक पहुंचाते रहेंगे। ताकि जनता को सूचना अधिकार अधिनियम के तहत कम से कम आवेदन की जरूरत पड़े। लेकिन नौकरशाही का एक बड़ा तबका जिस सूचना का अधिकार कानून बनने के शुरूआती दिनों से ही मुखालफत करता रहा हो, उससे इस कानून के अनुपालन की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है ?
   सूचना अधिकार कानून लागू कर सरकार ने निसंदेह एक क्रांतिकारी काम किया है,लेकिन क्या महज़ कानून बना देने से समस्याएं हल हो जाती हैं, यह भी एक वाजिब सवाल है। सूचना अधिकार कानून का जो हश्र हो रहा है,उससे साफ जाहिर है कि नागरिकों को सूचना पाने का अधिकार केवल कानून से जुड़ा मसला नहीं है। बल्कि यह उस पूरी व्यवस्था से जुड़ा मामला है, जो गोपनीयता की आड़ में एक भ्रष्टतंत्र को संचालित और संरक्षित कर रही है। सूचनाएं छिपाने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाए जा रहे हैं। सूचना कार्यकर्ताओं को प्रताड़नाएं दी जा रही हैं। इस तरह के भ्रष्टाचार में केवल नौकरशाही से जुड़े अफसर ही नहीं हैं, बल्कि राजनीतिक दलों की संलिप्तता अब जग-जाहिर हो चुकी है। जो राजनैतिक दल सूचना अधिकार कानून लागू करने के चैम्पियन बन रहे हैं, वह भी पाक साफ नहीं हैं।
   साथियों, ऐसे में हमारी लड़ाई केवल सूचना पाने के अधिकार तक ही सीमित नहीं है। बल्कि यह लड़ाई उस पूरी भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ है, जो गोपनीयता की आड़ में जनता का खून चूस रही है। हमारी लड़ाई अमित जेठवा, शशिधर मिश्रा, सतीश शेट्टी और उन जैसे तमाम सूचना कार्यकर्ताओं को न्याय दिलाने के साथ ही उस भ्रष्टाचार के खिलाफ भी है जिसके लिए ये लोग लड़ते हुए शहीद हुए हैं। आइये, हम भी इन शहीदों के साथ अपनी आवाज़ बुलंद करें।


निवेदक : अवनीश राय, शाह आलम, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, गुफरान, मुकेश चौरासे, अली अख़्तर, देवाशीष प्रसून, अरूण उरांव, राजीव यादव, शाहनवाज़ आलम, अलका सिंह, अंशुमाला सिंह, श्वेता सिंह, नवीन कुमार, राघवेंद्र प्रताप सिंह, प्रबुद्ध गौतम,अर्चना महतो, विवेक मिश्रा, रवि राव, राकेश, लक्ष्मण प्रसाद, दीपक राव, करूणा, आकाश, नाजिया, राजलक्ष्मी शीत मिश्रा व अन्य साथी।

जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) की तरफ से जारी। संपर्क – 9873672153, 9910638355, 9313129941
e-mail – jucsindia@gmail.com,  web access  - www.jucsindia.blogspot.com   

Saturday, July 24, 2010

Rally to denounce the murder of RTI Activist Amit Jethwa

One more dead. Yet another person who raised his voice against corruption was killed. And  we remain silent.

Politicians, parties, the government, officials, moneyed people and criminals have joined hands. They constitute a gang that is robbing the nation. Anyone who dares to raise his voice against this gang is killed.

There is only one solution to this mayhem—the voice of the people. This recent spate of brutal and senseless murders of those who have raised their voice against corruption is a warning: our democracy is in danger; our own lives are in danger. We are the only ones who can set this right.

Whenever any activist exposes corruption against someone mighty in the government, it is futile to expect any protection from police, which is directly controlled by the political executive. It is also futile to expect the anti-corruption agencies in that state to take any effective action because these anti-corruption agencies are directly controlled by political executive. The police and anti-corruption agencies, on the contrary, collude with the corrupt. They either turn a blind eye to complaints and threats or openly victimize the complainant.

Therefore, there is a strong need for an institution which is completely independent of political executive and has adequate powers and resources to deal with such issues.

A rally has been organized to denounce the murder of Amit Jethwa and demand that all parties make a public commitment to put appropriate systems in place to address corruption.

 This rally will take place on Monday, July 26, 2010 at 6 pm. We will gather at Gandhi Peace Foundation (ITO, in front of Deen Dayal Upadhyaya library) and move toward the Samadhi of Babu Jagjivan Ram (in front of Rajghat).

Please come and join us for this important event. Let us raise our voices together!

The rally is jointly being organized by several organizations including Journalist’s Union for Civil Society (JUCS),Yuva Koshish, NCPRI, Parivartan, National Alliance for People’s Movement (NAPM), Aasha Parivar,Sadbhav Mission, Lohia Vichar Manch, Hum Hindostani, Journalist for Peace, Pardarshita, IGSS, Shahari Adhikar Manch etc.

For more information, please contact Shah Alam at 9873672153.

राष्ट्रविरोधी सर्वे पर अल्पसंख्यक आयोग की नोटिस

- जेयूसीएस की अपील पर की कार्रवाई

नई दिल्ली, 24 जुलाई। राष्ट्रीय  अल्पसंख्यक आयोग ने मुस्लिम धर्मावलम्बियों के बीच किए जा रहे राष्ट्विरोधी सर्वे पर सर्वे कराने वाली कम्पनी ‘मार्केटिंग एवं डेवल्पमेंट रिसर्च एसोसिएट्स (एमडीआरए) को नोटिस जारी किया है। सर्वे में मुस्लिम समाज की कट्टरपंथी व राष्ट्द्रोही छवि पेश किए जाने के संबंध में जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) ने आयोग से इस पर रोक लगाने की मांग की थी।

    आयोग के अध्यक्ष शफीकुल कुरैशी के विशेष कार्यकारी अधिकारी एन.ए. सिद्दीकी ने एमडीआरए कम्पनी के प्रबंध निदेशक को भेजी गई नोटिस में ‘असामाजिक व राष्ट्विरोधी’ सर्वे पर स्पष्टीकरण मांगा है। इससे पूर्व में जर्नलिस्टस यूनियन फॉर सिविल सोसायटी के एक प्रतिनिधिमंडल ने आयोग के अध्यक्ष से मुलाकात कर उनसे इस सर्वे पर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले शाह आलम ने बताया कि एमडीआरए द्वारा किए जा रहे इस सर्वे का मकसद मुस्लिम युवाओं की छवि को कट्टर व आतंकवादियों का हिमायती बताना है। उन्होंने कहा कि जब मुंबई की एक अदालत ने अजमल आमीर कसाब को सजा सुना चुकी है, तो इस इस पर सवाल उठाना अदालत की भी अवमानना है।
    सर्वे में कसाब की सजा पर धर्मावलम्बियों से इस तरह के प्रश्न पूछे गए हैं कि क्या कसाब को दी गई सजा उचित है या कुछ ज्यादा ही कठोर है? क्या आप सोचते हैं कि कसाब के मुकदमे की फिर से सुनवाई की जाए और उसकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए या वापस पाकिस्तान भेज दिया जाए? शाह आलम ने कहा कि देश में पहले से ही मुस्लिम समुदाय के लोगों से दोहरा बरताव किया जा रहा है। इस सर्वे से ऐसे व्यवहार को प्रमाणिकता दिलाने की कोशिश की जा रही है। संगठन के ही विजय प्रताप ने कहा कि सर्वे में जिस तरह से एकतरफा सवाल पूछे गए हैं उससे साफ जाहिर होता है कि सर्वे करने वालों का मकसद मुस्लिमों की छवि को राष्ट्विरोधी साबित करना है। उन्होंने कहा कि थोड़े से धर्मगुरुओं के बीच ऐसे सर्वे के आधार पर एक पूरे समुदाय के खिलाफ नफरत की मानसिकता का निर्माण करने की कोशिश की जा रही है।

द्वारा जारी

ऋषि कुमार सिंह, अवनीश राय

Monday, July 19, 2010

Role of Journalists in Undeclared Emergency

Dear All,

The fake encounter of a freelance journalist Hem Chandra Pandey alias Hemant Pandey has clearly exposed that Indian journalists are working in an undeclared emergency situation. United Nation's premier agency UNESCO has demanded probe into the circumstances in which the scribe was killed. IFJ, PCI, civil society organisations and various journalist unions including Uttarakhand political leaders across the party line have condemned this killing in cold blood. Although the Union Home Minister has denied the probe demand, that was put forward by Swami Agniwesh on behalf of the civil society at large.

Situation seems to be worsened taking into account the fresh attack on TV Today by Hindutva goons. Now the Indian journalists are facing two pronged threat- one from the Indian State itself and other from fanatic violent groups operating as a parallel force in this country. And unfortunately, corporate media groups are engaged in disowning their own journalists under the state's pressure, as has been in Hemant Pandey's case where Hindi dailies like Nai Dunia, Dainik Jagran and Rashtriya Sahara openly and immediately published disclaimer that he was not associated with these publications in any form.

This is certainly a case of undeclared emergency. Nothing better could be thought of. So it seems inevitable to raise the question: What ahead?  

Journalists For People, an informal and open forum of working journalists calls for a thoughtful debate on these and other related issues. You are cordially invited to an open session on the topic:

Role of Journalists in Undeclared Emergency

Date: July 20, 2010, Tuesday
 
Time: 5.30 - 8.30 p.m.
 
Venue: Gandhi Peace Foundation, Deen Dayal Upadhyaya Marg, Near ITO, New Delhi-2

After the open session, a lecture series will be formally announced in memory of slained journalist Hem Chandra Pandey each year on July 2nd, the day he was killed.

The meeting will end with a hate motion declared against those Hindi dailies who have disowned Pandey.

Please participate in large numbers.
 
 
For queries, please contact:
Ajay (9910820506)
Vishwadeepak(9910540055)
 
On behalf of
Journalists for People

Tuesday, July 13, 2010

ये मास कम्युनिकेशन का पेपर या इनफोर्मेसन टेक्नालोजी का !

प्रति,
कुलपति,
गुरु जम्भेश्वर विज्ञान व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
हिसार,

निदेशक,
दूरस्थ शिक्षा
गुरु जम्भेश्वर विज्ञान व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
हिसार

विषय - एमए मास कम्युनिकेशन के प्रश्न पत्र में पाठ्यक्रम से बाहर के प्रश्न पूछे जाने के संबंध में

महोदय,
युवा पत्रकारों व पत्रकारिता छात्रों के संगठन जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी जेयूसीएस को विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा से मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई कर रहे छात्रों से इस तरह की शिकायतें मिली हैं कि एम ए द्वितीय वर्ष के वार्षिक परीक्षा के दौरान मीडिया प्रोडक्शन एमएमसी-202 के प्रश्नपत्र में कई प्रश्न पाठ्यक्रम से बाहर के पूछे गए। इस प्रश्नपत्र में पूछे गए ज्यादातर प्रश्नों के बारे में दूरस्थ शिक्षा केन्द्र द्वारा उपलब्ध कराए गए पाठ्य सामग्री में कोई उल्लेख नहीं है। ऐसे कुछ प्रश्न उदाहरण के तौर पर देखे जा सकते हैं -

प्रश्न - 'अपलिंकिंग' की परिभाषा दीजिए। प्रादेशिक संचारण से सेटेलाइट संचरण तक प्रसारण तकनीकी में परिवर्तन का वर्णन कीजिए।

प्रश्न - 'मोडम' की परिभाषा दीजिए। मोडम के विभिन्न प्रकारों के अनुप्रयोगों तथा कार्यों को लिखिए।

प्रश्न - ‘एनिमेशन’ की परिभाषा दीजिए। वर्णन कीजिए कि इसका कार्यान्वयन कम्प्यूटर द्वारा कैसे होता है?


 
यह प्रश्न जहां से पूछे गए हैं, वह दूरस्थ शिक्षा के कोर्स करिकुलम में तो है, लेकिन इस प्रश्नपत्र की पढ़ाई के लिए जो पाठ्य सामग्री छात्रों को उपलब्ध कराई गई है, उसमें इसका कहीं भी जिक्र नहीं मिलता है। जबकि वार्षिक परीक्षा में इन्हीं में से कई प्रश्न छात्रों से पूछे गए। इन प्रश्नों के बारे में कोई जानकारी नहीं होने के कारण ज्यादातर छात्रों को ये प्रश्न छोड़ने पड़े। संगठन छात्रों की तरफ से आप से कुछ प्रश्नों का जवाब चाहता है -



1 - अगर दूरस्थ शिक्षा केन्द्र पाठ्यक्रम निर्माण के दौरान इन प्रश्नों से संबंधित पाठ को अपने करिकुलम में शामिल करता है, तो इसके पढ़ाई के लिए पाठ्य सामग्री क्यों नहीं उपलब्ध कराई गई?
2 - जिन प्रश्नों से संबंधित जानकारी दूरस्थ शिक्षा केन्द्र द्वारा उपलब्ध कराए गए पाठ्य सामग्री में नहीं है, उनसे प्रश्न क्यों पूछे गए?
3 - क्या विश्वविद्यालय व दूरस्थ शिक्षा केन्द्र इस प्रश्नपत्र में ऐसी गलती स्वीकार करता है?
4 - क्या विश्वविद्यालय व दूरस्थ शिक्षा केन्द्र इस प्रश्नपत्र की पुनःपरीक्षा पर विचार कर रहा है। अगर नहीं तो छात्रों के साथ हुई इस तरह की नाइंसाफी की भरपाई के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

विश्वविद्यालय व दूरस्थ शिक्षा केन्द्र की इस गलती ने हजारों छात्रों का भविष्य संकट में डाला है। इससे विश्वविद्यालय व दूरस्थ शिक्षा केन्द्र की छवि को भी गंभीर क्षति पहुंची है। इसलिए संगठन की आप से मांग है कि इस पर जल्द से जल्द निर्णय लिया जाए और इसे सार्वजनिक किया जाए। हम आप से यह भी अनुरोध करते हैं कि हमारे शिकायत पत्र पर विश्वविद्यालय व दूरस्थ शिक्षा केन्द्र द्वारा की गई कार्यवाई से भी हमें अवगत कराए।

द्वारा


विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, अरुन उरांव, अवनीश राय, नवीन कुमार, अरुन वर्मा

अनियमितताओं की जांच को लेकर जारी आमरण अनशन पर ज्ञापन

ज्ञापन


प्रति,

जिलाधिकारी, बहराइच



महोदय,

बहराइच में विकास खंड फखरपुर की ग्राम पंचायत बुबकापुर के निवासी पिछले दस  दिन से आमरण अनशन पर बैठे हैं। उनकी मांग है कि ग्रामसभा में विकास कार्यों की अनियमितता की उच्च स्तरीय जांच कराई जाये। लेकिन बहराइच जिला प्रशासन की तरफ से इन अनशनरत ग्रामीणों की मांगें सुनने के कोई भी अधिकारी नहीं पहुंचा है। आमरण अनशन को पांच दिन होने के बावजूद जिला प्रशासन द्वारा संज्ञान न लिये जाने की घटना को क्या माना जाये ? जेयूसीएस जिला प्रशासन से यह मांग करता है कि जिला प्रशासन पूरे मुद्दे पर अपना पक्ष सार्वजनिक करें। तय कानूनी प्रक्रियाओं में यह भी मांग है कि बुबकापुर ग्राम सभा में भ्रष्टाचार के मामले में उच्चस्तरीय जांच करायें। चूंकि बहराइच जिले में भ्रष्टाचार की कई घनटाएं सामने आयी हैं। इसलिए भ्रष्टाचार की शिकायतों से निपटने के लिए जिला प्रशासन ने क्या प्रणाली विकसित की है,इसे सार्वजनिक करने की भी मांग है। बहराइच में भ्रष्टाचार के मामले में एक युवक की मौत का जिक्र जरूरी है। हुजूरपुर थाना क्षेत्र में धनपारा गांव में एक युवक के परिजन की दबंगों ने हत्या कर दी थी,क्योंकि वह ग्राम सभा के विकास कार्यों की अनियमितताओं की जांच की मांग कर रहा था। इसमें भी जिला प्रशासन पर भ्रष्टाचार की शिकायतों को गंभीरता से न लेने का आरोप लगा था। इसके बाद कई और ग्राम सभाओं के जागरूक नागरिक विकास कार्यों में धांधली की शिकायत के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं। लेकिन उन्हें कोई ठोस निदान नहीं मिला है। ग्राम सभा टेंड़वा बसंतापुर में देखने को मिला है। जहां के दो लड़के राजेंद्र और अनिल ने ग्राम सभा में हुए भ्रष्टाचार को लेकर आवाज उठायी,जिसके बदले में उन्हें ग्राम प्रधान ने फर्जी मुकदमों में फंसा दिया है। लिहाजा जेयूसीएस यह मांग करता है कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने वाली प्रक्रियाओं को सार्वजनिक किया जाये। अनशनरत बुबकापुर के ग्रामीणों की मांग पर जिला प्रशासन ठोस कार्रवाई करे।

द्वारा-

विजय प्रताप, नवीन कुमार,ऋषि कुमार सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह,चंदन शर्मा,अवनीश राय,अभिषेक रंजन सिंह,अरूण कुमार उरांव,प्रबुद्ध गौतम,अर्चना महतो,राजीव यादव,अंशुमाला सिंह,शाहआलम, विवेक मिश्रा, रवि राव, प्रिया मिश्रा, शाहनवाज आलम, राकेश,लक्ष्मण प्रसाद, अनिल, देवाशीष प्रसून, चंद्रिका, दीपक राव, करूणा, आकाश, प्रसन्न आशीष, गजेंद्र, प्रवीण मालवीय, ओम नागर, श्वेता सिं, अलका देवी, नाजिया, पंकज उपाध्याय, तारिक, मसीहुद्दीन संजरी, वरूण, अभिमन्यु, राजलक्ष्मी, योगेश, दिलीप, दिनेश कुशावराव मुरार, राम नरेश, अरुण लाल, प्रत्यूष प्रशांत, शाहनवाज, मुकेश चौरासे, अली अख्तर, गुफरान व अन्य।

जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) ई-36,गणेशनगर,नई दिल्ली-92 की तरफ से जारी

राष्ट्रविरोधी सर्वे बंद किया जाए: जेयूसीएस

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को ज्ञापन सौंपकर की मांग

नई दिल्ली 7 जुलाई। जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी ने एक निजी कम्पनी की ओर से युवा मुस्लिम धर्मगुरुओं के बीच की जा रहे उस सर्वे का विरोध किया है, जिसमें मुस्लमानों की छवि को राष्ट्विरोधी के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है। संगठन ने मंगलवार को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष शफी कुरैशी को इस संबंध में ज्ञापन सौंपकर पूरे मामले हस्तक्षेप की मांग की। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन ने पूरे तथ्य में कार्रवाई का आवाश्वसन दिया है। गौरतलब है कि यह सर्वे दिल्ली की ही एक कम्पनी ‘मार्केटिंग एवं डेवल्पमेंट रिसर्च एसोसिएट्स (एमडीआरए) करा रही है। इस सर्वे में अजमल आमीर कसाब से संबंधित कई ऐसे सवाल भी पूछे गए हैं, जो अदालत के फैसले के खिलाफ है। जेयूसीएस के राष्टीय कार्यकारिणी सदस्य शाह आलम ने कहा कि एमडीआरए द्वारा किए जा रहे इस सर्वे का मकसद मुस्लिम युवाओं की छवि को कट्टर व आतंकवादियों का हिमायती बताना है। उन्होंने कहा कि जब मुंबई की एक अदालत ने अजमल आमीर कसाब को सजा सुना चुकी है, तो इस इस पर सवाल उठाना अदालत की भी अवमानना है। उन्होंने कहा कि देश में पहले से ही मुस्लिम समुदाय के लोगों से दोहरा बरताव किया जा रहा है। इस सर्वे से ऐसे व्यवहार को प्रमाणिकता दिलाने की कोशिश की जा रही है। संगठन के ही विजय प्रताप ने कहा कि सर्वे में जिस तरह से एकतरफा सवाल पूछे गए हैं उससे साफ जाहिर होता है कि सर्वे करने वालों का मकसद मुस्लिमों की छवि को राष्ट्रविरोधी साबित करना है। उन्होंने कहा कि थोड़े से धर्मगुरुओं के बीच ऐसे सर्वे के आधार पर एक पूरे समुदाय के खिलाफ नफरत की मानसिकता का निर्माण करने की कोशिश की जा रही है। मुकेश चौरासे ने बताया कि अल्पसंख्यक आयोग को सौंपे गए ज्ञापन में संगठन ने इस तरह के सर्वे पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। जबकि विजय प्रताप ने कहा कि इस सर्वे पर सभी न्यायप्रिय संस्थाओं को आगे आकर अपना विरोध दर्ज कराना चाहिए।

द्वारा -
शाह आलम
मो.09873672153
जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी,ई-36,गणेशनगर नई दिल्ली-92

इस सर्वे पर आधारित अजय प्रकाश की स्टोरी यहाँ देखे इस सर्वे पर संदेह करे