Friday, August 27, 2010

urgent meeting on 17th verdict on ayodhya issue

Dear all , 
              As we all know that on 17th september 2010 there will be a court decision on Babri masjid and Ramjanm bhumi by Allahbad high courts lucknow bench .The decision will tell whether there was masjid or mandir at the disputed site .Various communal forces are trying to create chaos on the issue and spread rumours and are trying to mobilise people.
            Before we get late we should start earlier at our level and do whatever we can do .On these lines of thought Asha parivar, NAPM , Sadbhavna mission ,Yuva koshish,Journilist,s Union For Civil Society,Lohia vichar manch  and other representatives of other organisations are planning to held a meeting on 27th August .It is our humble appeal to understand the importance of this issue and participate actively to make plan for our future programmes on the matter .
 
Venue-24/84 Friends,Apt-Flat N.3
Gaffar manzil ,Jamia nagar
New Delhi
 
Date -29-08-10
 
 
TIME- 7--8.30 PM
 
CONTACT -SHAH ALAM -9873672153
Neeraj --9013673144

Tuesday, August 10, 2010

आजाद की हत्या और सूत्रों की ‘राजनीति’

किसी आमफहम हो चुके तथ्य पर सफेद झूठ बोलने और गुमराह करने का आरोप लगने के भय से सरकारें अपनी बात खुद न कह कर किस तरह ‘अपने’ पत्रकारों के मुह से अपनी बात रखवाती है, 13 जुलाई 2010 के दैनिक जागरण में छपी नीलू रंजन की खबर ‘नक्सलियों ने ही कराया आजाद का एंकाउंटर’ इसका ताजा उदाहरण है।

खबर में इस आमफहम हो चुके तथ्य कि आजाद की हत्या कर सरकार खास कर गृहमंत्रालय ने माओवादियों से बात-चीत के किसी भी उम्मीद को खत्म कर दिया है के विपरीत बताया गया है कि ‘आजाद का एंकाउंटर खुद बात-चीत के विरोधी नक्सलियों ने पुलिस को सूचना देकर करवाई है।’ नीलू जी ने इस दावे को सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े कुछ अधिकारियों के हवाले से कही है। नीलू आगे लिखते हैं ‘आजाद को दरअसल बात-चीत की सरकार की पेशकश स्वीकार करने की कीमत चुकानी पडी है। उसने न सिर्फ चिदम्बरम की बात-चीत की पेशकश को स्वीकार किया था, बल्कि केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार स्वामी अग्निवेश से मुलाकात कर बात-चीत की शर्त का पत्र भी लिया था।

खबर की इन पंक्तियों से कुछ बातें स्पष्ट हैं। अव्वल तो यह कि आजाद की हत्या जिनके साथ फ्रीलांस पत्रकार हेमचंद पाण्डे को भी माओवादी बताकर मार डाला गया, पर उठने वाले सवालों का जवाब सरकार नहीं दे पा रही है और अब सवालों को दूसरी दिशा में मोडना चाहती है। लेकिन चूंकि इस प्रयास में उसे पकड में आ जाने वाले झूठे तर्क देने होंगे जिससे उसकी और किरकिरी होगी इसलिए वो ये सब नीलू और उन जैसे अन्य ‘राजधर्म’ निभाने वाले पत्रकारों से करवा रही है। जिसमें तथ्य और तर्क पिछले 10-15 सालों से सरकारों को ऐसे ही ‘मुश्किल’ सवालों से उबारने के लिए पैदा किए गए कथित रक्षा विशेशज्ञ मुहैया करा रहे हैं। नीलू इन्हीं लोगों के तर्कों के बुनियाद पर एक जाहिर हो चुकी सच्चाई को छुपाने के लिए सरकारी दिवार खडी करना चाहते हैं।

दूसरी बात जो खबर स्थापित करना चाहती है वो ये कि माओवादी अनुशासित और संगठित संगठन नहीं हैं बल्कि डकैतों के गिरोह की तरह हैं जो अपने किसी बडे नेता को सिर्फ इसलिए मार देते हैं कि वो सरकार से बात-चीत करना चाहता है। दूसरे अर्थों में खबर सरकार के इस पुराने धिसे-पिटे तर्क को स्थापित करना चाहती है कि सरकार तो बात-चीत के लिए तैयार है, माओवादी ही ऐसे किसी प्रयास को नहीं सफल होने देना चाहते। यहां तक कि सरकार द्वारा मध्यस्थता के लिए ‘नियुक्त’ स्वामी अग्निवेश और अपने ही एक बडे नेता के इस दिशा में प्रयास को भी नाकाम कर रहे हैं।





यहां ध्यान देने वाली बात है कि नीलू ने स्वामी अग्निवेश को जो कुछ अन्य लोगों के साथ माओवादियों और सरकार के बीच बात-चीत का रास्ता निकालने की लम्बे समय से स्वतंत्र प्रयास में थे को सरकार द्वारा ‘नियुक्त’ लिखा है। जबकि अग्निवेश ऐसे किसी ‘नियुक्ति’ से इनकार किया है। उनके अनुसार सरकार सिर्फ उनसे सम्पर्क में थी। जिस पर बाद में सरकार की तरफ से असहयोगी रवैया अपनाया जाने लगा और दिल्ली में उनके द्वारा इस प्रयास के बाबत प्रेस कांफ्रेंस की योजना को अंतिम समय में टलवा दिया गया। दि हिंदु, इण्डियन एक्सप्रेस और जनसत्ता में छपे खबरों के मुताबिक अग्निवेश यह प्रेस कांफ्रेंस आजाद के कथित एंकाउंटर में मारे जाने से दो दिन पहले प्रस्तावित था। पत्रकार हेमचंद्र पाण्डे जिन्हें आजाद के साथ ही नकसली बताकर मारा गया का अपने कार्यालय के प्रांगण में आयोजित श्रद्धांजली कार्यक्रम में अग्निवेश ने सरकार पर खुलेआम आरोप लगाया कि आजाद की हत्या से सरकार ने अपनी फास्सिट मंशा जाहिर कर दी है कि वो किसी भी कीमत पर माओवादियों से वार्ता नहीं करना चाहती और इस प्रयास में लगे आजाद जैसे लोगों को वो किस तरह ठंडे दिमाग से मारती है।

जाहिर है, सरकार एक स्वतंत्र और इमानदार प्रयास करने वाले व्यक्ति को अपने द्वारा ‘नियुक्त’ बताकर माओवादियों से बात-चीत करने मंे अपनी तरफ से जानबूझ कर की गयी शरारत को ढकना चाहती है और इस इमानदार प्रयास को अपना श्रेय देना चाहती है। जिसके लिये नीलू ने आजाद और हेमचंद्र पाण्डे की हत्या के ठीक बाद अग्निवेश द्वार जारी बयान जिसमें उन्होंने इस घटना को माओवादियों और सरकार के बीच बात-चीत के किसी भी सम्भावना को खत्म करने वाला बताया था, को उसके वास्तविक संदर्भों से काट कर अपनी स्टोरी के अंत में ‘पेस्ट’ कर दिया है। वे लिखते हैं ‘कट्टर नक्सली नेताओं ने आजाद को रास्ते से हटाने का फैसला किया और आंध्र प्रदेश पुलिस को आजाद की सूचना दे दी और वह पलिस का शिकार बन गया। स्वामी अग्निवेश का कहना है कि आजाद की मौत के साथ ही नक्सलियों से बात-चीत की तमाम सम्भावनाएं भी खत्म हो गयी हैं’। यानि, जो बयान अग्निवेश ने सरकार को निशाना बनाते हुए दिया था उसे नीलू ने अपनी कलाकारी से सरकार के पक्ष में ‘पेन्ट’ कर दिया।

इस खबर में अपने नाम से दिए गए बयान पर जब अग्निवेश से पूछा गया तो उन्होंने इसे तोडा-मरोडा और प्लान्टेड बताया।

बहरहाल, नीलू की कलाकारी का एक और नमूना देखें। वे लिखते हैं ‘सूत्रों' की मानें तो आजाद बातचीत की पेशकश से स्वामी अग्निवेश का पत्र लेकर जा रहा था, ताकि पोलित ब्यूरो में इस पर अंतिम फैसला लिया जा सके। यह माना जा रहा था कि आजाद नक्सलियों के र्स्वोच्च नेता गणपति से बातचीत के लिए राजी कर लेगा’। गौरतलब है कि आजाद द्वारा शांतिवार्ता हेतु पत्र लेकर पोलिट ब्यूरो के बीच बहस के लिए जाने और वहां गणपति से इस मद्दे पर बात करने की योजना वाला बयान, आजाद के वारगंल के जंगलों में कथित एंकाउंटर में मारे जाने के पुलिसिया दावे के बाद वरवर राव और किशन जी की तरफ से आया था। जिसमें उन्होंने पुलिस पर आजाद के हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए कहा था कि आजाद और हेमचंद्र को पुलिस ने नागपुर के पास पकडा था। जहां से उन्हें इस मुद्दे पर मीटिंग में जाना था। वरवर राव और किशन जी का यह बयान दैनिक जागरण समेत सभी अखबारों में छपा था। अब सवाल उठता है कि ये बयान हफ्ते भर बाद ही ‘सूत्रों' के हवाले से कैसे और क्यों छापी गयी।



- द्वारा जारी

अवनीश राय, शाह आलम, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, देवाशीष प्रसून, अरूण उरांव, राजीव यादव, शाहनवाज़ आलम, चन्द्रिका, दिलीप, लक्ष्मण प्रसाद, उत्पल कान्त अनीस, अजय कुमार सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, शिवदास, अलका सिंह, अंशुमाला सिंह, श्वेता सिंह, नवीन कुमार, प्रबुद्ध गौतम, अर्चना महतो, विवेक मिश्रा, रवि राव, राकेश, तारिक शफीक, मसिहुद्दीन संजारी, दीपक राव, करूणा, आकाश, नाजिया अन्य साथी

जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस), नई दिल्ली इकाई द्वारा जारी. संपर्क – 9873672153, 9910638355, 9313129941

नोट- कुछ मानवीय और तकनीकी भूलों के चलते हम दैनिक जागरण में 13 जुलाई को छपी नीलू रंजन की खबर पर टिप्पड़ी नहीं कर पाए थे। जिसके लिए जेयूसीएस क्षमा प्रार्थी है। लेकिन आजाद की फर्जी मुठभेड़ के बाद केंद्र सरकार जिस तरह माओवादियों के खिलाफ अपने मिथ्या अभियान में लगी है उसे देखते हुए हमें लगता है कि नीलू रंजन की इस प्लांटेड स्टोरी की सच्चाई पर पत्रकारीय और वैचारिक दृष्टि कोण से बहस होनी चाहिए।

Monday, August 2, 2010

संजय गांधी की लंपट परम्परा के नए वाहक हैं वी एन राय: जेयूसीएस

- कुलपति पद से हटाने की मांग, चलेगा हस्ताक्षर अभियान 
नई दिल्ली, 2 अगस्त । महात्मा गांधी अंतर राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति वी एन राय के स्त्री विरोधी बयान की जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) ने कड़ी निंदा की है। जेयूसीएसनेउन्हें तत्काल कुलपति जैसे जिम्मेदाराना पद से हटाने की भी मांग की है। 
संजय गांधी
जेयूसीएस की तरफ से सोमवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि कुलपति जैसे अकादमिक महत्व के पद पर नियुक्त व्यक्ति अगर स्त्रियों के प्रति ऐसा नजरिया रखता हो तो समाज को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। क्योंकि विश्वविद्यालय जैसे संस्थान ही किसी भी देश के भविष्य को तय करते हैं। संगठन ने उन्हें तत्काल उनके पद से हटाने की मांग करते हुए कहा कि वीएन राय का यह बयान बहुत हद तक आपेक्षित है, क्योंकि वह जिस पुलिसिया पृष्टभूमि से आते हैं, उनसे इससे इतर कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती। दरअसल, पिछले दिनों जिन तीन विश्वविद्यालयों अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया और वर्धा विश्वविद्यालय में पुलिसिया और प्रशासनिक पृष्टभूमि के लोग कुलपति बने हैं, तब से इन विश्वविद्यालयों में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। कहीं सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करने पर लगभग डेढ़ सौ छात्रों को निलम्बित कर दिया गया तो कहीं विश्वविद्यालय में संगोष्ठी व सेमिनारों पर भी प्रतिबंध है। वर्धा में तो दलित विरोधी व अपनी जाति के भाई-भतीजों की नियुक्ति से लेकर नकल करके किताबें लिखने वाले अनिल अंकित राय को विभागाध्यक्ष बनाने का मामला पहले ही सामने आ चुका है। अब वहां के कुलपति ने जो स्त्रियों के प्रति अपनी गंदी सोच जाहिर की वह इस सिलसिले का नया धत्तकर्म है।
जेयूसीएस का मानना है कि अपने गृह जनपद में महिला हिंसा जैसे मुद्दों पर एनजीओ चलाने वाले  ऐसे कुलपति को अब तक संरक्षण देने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी भी जिम्मेदार है। जिसने इनके खिलाफ अब तक छात्रों व तमाम जन संगठनों की तरफ से मिली शिकायतों व साक्ष्यों को न सिर्फ नजरअंदाज किया बल्कि इस पूर्व पुलिस अधिकारी को विश्वविद्यालय में डंडा भांजने, गाली-गलौज करने की खुली छूट भी दे रखी है। ऐसा लगता है कि राज्य भविष्य के जिस अपने सैन्य राष्ट् की परियोजना पर काम कर रही है, यह सब उसी के तहत हो रहा है। जिस तरह से छत्तीसगढ़ में राज्य, माओवाद के दमन के नाम पर फिराक गोरखपुरी के पौत्र व तथाकथित साहित्यकार का लबादा ओढ़े विश्वरंजन का इस्तेमाल आदिवासियों के निर्मम दमन के लिए करती है, ठीक उसी तरह कैम्पस में लोकतंत्र की हत्या के लिए इस कथित प्रगतिशील पुलिस वाले का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह दरअसल ‘मिलिट्री  रिप्रेशन विद ह्यूमन फेस’ (मानवी चेहरे के साथ सैन्य दमन) का मामला है। इसलिए संगठन का मानना है कि वी एन राय के इस बयान को सिर्फ साहित्यिक दायरे तक सीमित करके देखने की बजाय लोकतंत्र के व्यापक फलक में देखा जाना चाहिए। 
रविन्द्र कालिया
राय के स्त्री विरोधी व लंपट विचारों को स्थान देने वाली पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादक रविन्द्र कालिया वही व्यक्ति हैं जो आधुनिक भारत के लंपटीकरण के प्रवर्तक संजय गांधी का भाषण लिखा करते थे। ऐसा लगता है कि जिस तरह से दिन ब दिन कांग्रेस का खूनी पंजा मजबूत होता जा रहा है, वैसे-वैसे उस दौर की तमाम विकृतियां भी समाज में कालिया व राय जैसे लोगों के माध्यम से सचेत रूप से फैलायी जा रही हैं। आखिर स्त्रियों को ‘छिनाल’ कहने वाले वी एन राय, उसे जगह देने वाले कालिया और तीन दशक पहले जबरन लाखों लोगों का नसबंदी कराने वाले संजय गांधी में क्या अंतर है? संजय युग की घोर दलित, स्त्री व गरीब विरोधी युग की वापसी का प्रयत्न करने वाले रविन्द्र कालिया इससे पहले भी नया ज्ञानोदय के जनवरी 2010 के मीडिया विशेषांक के संपादकीय में कथित विकास की दौड़ में पिछड़ गए और राज्य की जिम्मेदारी से भागने की स्थिति में फुटपाथों पर भीख मांग कर जीवनयापन कर रहे वर्ग को भी गरिया चुके हैं (देखें नया ज्ञानोदय का  जनवरी 2010  मीडिया विशेषांक - अब तो संपन्नता का यह उदाहरण है कि भिखारियों के पास भी फोन की सुविधा उपलब्ध है। वे फोन पर खबर रखते हैं कि किस उपासना-स्थल पर दानार्थियों की भीड़ अधिक है।) क्या कालिया का यह बयान तुर्कमान गेट के भिखारियों को अपने महंगी विदेशी गाड़ियों से रौंदने वाले संजय गांधी के काले कारनामों की पुनर्वापसी की वैचारिक पृष्टभूमि तैयार करने जैसी नहीं है?
संगठन ने तमाम प्रगतिशील धारा से जुड़े लेखक, पत्रकार व जन संगठनों से भी अपील की है कि जब तक इस स्त्री विरोधी, दलित विरोधी, जातिवादी, भ्रष्ट् कुलपति को वर्धा विश्वविद्यालय से हटा नहीं दिया जाता, तब तक वर्धा विश्वविद्यालय और उसके दूरस्थ केन्द्रों पर आयोजित कार्यक्रमों का बहिष्कार करें और इन्हें अपने कार्यक्रम में प्रवेश प्रतिबंधित कर दें। जेयूसीएस ने कुलपति वी एन राय को हटाने की मांग को लेकर हस्ताक्षर अभियान का निर्णय लिया है। इसके तहत संगठन के लोग छात्रों व समाज के प्रति संवेदनशील लोगों से समर्थन की अपील करेंगे। 
- द्वारा जारी  
अवनीश राय, शाह आलम, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, देवाशीष प्रसून, अरूण उरांव, राजीव यादव, शाहनवाज़ आलम, चन्द्रिका, दिलीप, लक्ष्मण प्रसाद, उत्पल कान्त अनीस, अजय कुमार सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, शिवदास, अलका सिंह, अंशुमाला सिंह, श्वेता सिंह, नवीन कुमार, प्रबुद्ध गौतमअर्चना महतोविवेक मिश्रारवि रावराकेश, तारिक शफीक, मसिहुद्दीन संजारी,  दीपक रावकरूणाआकाशनाजिया अन्य साथी
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस), नई दिल्ली इकाई  द्वारा जारी. संपर्क – 9873672153, 9910638355, 9313129941