Friday, May 11, 2012

आदिवासी गरीब नहीं- बीडी शर्मा

नई दिल्ली, 11 मई, 2012


इस समय हर तरह की ताकतें देश के कोने-कोने पर कब्जा कर रही हैं। जल, जंगल और जमीन पर कार्पोरेट का एकाधिकार हो रहा है और आदिवासी समुदाय को ढकेला जा रहा है। मैं व्यवस्था के कर्णधारों से पूछना चाहता हूं कि आदिवासी कब से करीब हो गया। उनके पास तो सब कुछ है।मैं प्रधानमंत्री से अपील करूंगा कि वे उन्हें गरीब मानकर बात न करें।

ये बातें शुक्रवार को प्रो. बीडी शर्मा ने कहीं। वह गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में युवा संवाद और जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) द्वारा आयोजित बातचीत आदिवासी समाज और हमारी जिम्मेदारियां विषय पर बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि 26 नवंबर, 1946 का दिन आदिवासियों के लिए काला दिन है क्योंकि इसी दिन देश ने संविधान को स्वीकार किया था। इसमें आदिवासियों के अधिकारों के संदर्भ में भारी विसंगति थी। इसके बावजूद राज्यपाल या स्वयं राष्ट्रपति द्वारा आदिवासी इलाकों की परंपरागत व्यवस्था को औपचारिक मान्यता प्रदान करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। प्रो. शर्मा ने यह भी कहा कि

जब फौज और समाज में युद्ध होता है तो अंततः समाज ही जीतता है। हिटलर ने भी जब सोवियत रूस की तरफ हमला किया तो उसे हार का मुंह देखना पड़ा।

गांधी जी के ग्राम गणराज्य की सोच के बारे में चर्चा करते हुए उन्होने कहा कि जिस आदिवासी समाज में महुए के रस को गंगाजल के रूप में देखा जाता है और नवजात के मुंह में सबसे पहले महुए का रस डाला जाता है, वर्तमान कानून में इस परंपरा को अपराध घोषित कर दिया गया है। दूसरी तरफ सरकार अंतर्राष्ट्रीय साजिश के तहत शराब की बिक्री कर रही है जो चाइना के ओपियम वार की तरह है। अगर इसपर नियंत्रण नहीं लगाया तो पूरा आदिवासी समाज इसमें डूब जाएगा। आदिवासी इलाकों के मामले में सीधा सवाल है कि धरती हमारी है पानी हमारा है हवा हमारी है ऐसे में कुछ नोटों की गड्डी की ताकत पर उद्योगों की स्थापना नहीं किया जा सकता। राज्य को आदिवासी इलाकों में एमओयू पर हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं है।कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया स्टडीज ग्रुप के अध्यक्ष अनिल चमड़िया ने कहा कि सरकार आंकड़ों में हेर-फेर करके देश में नक्सल प्रभावित इलाकों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है ताकि आदिवासी इलाकों की प्राकृतिक संपदा का दोहन करने के लिए हथियारबंद सुरक्षा बलों का सहारा लिया जा सके।

इस दौरान युवा संवाद के एके अरुण, किसान नेता डॉ सुनीलम् समेत कई वक्ताओं ने अपने विचार व्यवक्त किए। कार्यक्रम का संचालन विजय प्रताप ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन जेयूसीएस के अवनीश ने किया।



द्वारा जारी

युवा संवाद एवं जेयूसीएस

संपर्क- 8010319761


Friday, May 4, 2012

1st Kargil Film Festival Awam Ka Cinema 19-20 May 2012

पहला करगिल फिल्म उत्सव 19 मई से शुरु 15 मई तक फिल्में भेजें,
ज्यापदा जानकारी के लिए देखें www.kargilfilmfestival.tk
अवाम का सिनेमा की तरफ से पहले करगिल फिल्म उत्सव का आयोजन 19-20 मई 2012
को हो रहा है| बात जब बेहतर सिनेमा की हो जिसे बाजार नहीं बल्कि सिर्फ
सरोकारों को ध्यान में रखकर बनाया गया हो, तो ऐसे सिनेमा को उसके कम और
बिखरे ही सही दीवानों तक पहुंचाने के लिए स्वाभाविक तौर पर थोड़ी ज्यादा
मशक्कत करनी पड़ती है| इसलिए करगिल में फिल्म
उत्सव की मशक्कत पिछले तीन साल से की जा रही थी| लद्दाख क्षेत्र के
इतिहास में पहली बार किसी फिल्म मेले का आयोजन किया जा रहा है। अवाम का
सिनेमा में कुछ हमख्याल दोस्त ही इसके सहयोगी और प्रायोजक हैं।
 फिल्मग उत्सकव में कुछ चुनिंदा बेहतरीन फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा।
निश्चित ही लद्दाख के फिल्म प्रेमियों के लिए यह उत्सव एक सौगात से कम
नहीं है तथा साथ ही राज्य से बाहर स्थित अच्छे सिनेमा के शौकीनों के लिए
फिल्मों के साथ-साथ करगिल के खूबसूरत और सौहार्दपूर्ण माहौल का मुज़ाहिरा
करने का एक बढ़िया मौका भी।"अवाम का सिनेमा" ने 2006 में अयोध्या से छोटे
स्तर पर ही सही, एक सांस्कृतिक लहर पैदा करने की कोशिश की थी। मकसद था कि
फिल्मों के जरिए देश-समाज को समझने के साथ-साथ विभिन्न कला माध्यमों के
जरिए आमजन के बीच बेहतर संवाद बने, उनके सुख-दुःख में शामिल होने के
रास्ते खुलें और कुछ वैसी खोई विरासत से रूबरू होने का मौका मिले, जहां
इंसानियत के लिए बेहिसाब जगह है।
    "अवाम का सिनेमा" ने इस ओर कदम बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और
फिल्में बनाने से लेकर लोगों के खुद सिनेमा बनाने की जमीन तैयार करने की
दिशा में हर शुभचिंतक का सहयोग लेने की कोशिश की है जिससे आपसी सौहार्द
की ओर बढ़ने का रास्ता आसान हो सके। इस अभियान के तहत अयोध्या, मऊ,
जयपुर, औरैया, इटावा, दिल्ली और कश्मीर सहित कई जगहों पर फिल्म उत्सव का
आयोजन किया गया। इसी कड़ी में पहला करगिल फिल्म उत्सव भी है।जिस दौर में
हमारे लोकतंत्र को जीवन देने वाली संसद और विधानसभाओं से लेकर मीडिया तक
के सारे पायदान अपने सरोकारों की सरमाएदारी पर उतर चुके हैं, उसमें
जनता की सांस्कृतिक गोलबंदी ही एक ऐसा रास्ता है जो इन संस्थाओं को उनकी
जिम्मेदारी का अहसास करा सकता है और उसे पूरा करने पर मजबूर कर सकता
है।इसके लिए सबसे जरूरी पहल यह होगी कि जनसरोकारों के प्रति लोगों के बीच
संवाद कायम किया जाए। "अवाम का सिनेमा" इसी दिशा में एक कोशिश है। यह
आयोजन बगैर किसी प्रायोजक के अब तक चलता आया है और आगे भी ऐसे ही जारी
रहेगा। एक बार फिर हम आपको इसमें आमंत्रित करते हैं। हमें उम्मीद है कि
जनसरोकारों  का दायरा और व्यापक बनाने की कोशिशों में हमें आपकी मदद जरूर
मिलेगी।

--
AWAM KA CINEMA
DIRECTORATE OF FILM FESTIVALS
320 SARYU KUNJ DURAHI KUWA,
AYODHYA-224123, UP, INDIA.

E Mail - awamkacinema@gmail.com
+91 9873672153
www.awamkacinema.org

KARGIL FILM FESTIVAL-AWAM KA CINEMA
KARGIL FILM SOCIETY
Kargil, Laddakh, India.
E Mail - kargilfilmfestival@gmail.com
+91 9419728518

www.kargilfilmfestival.tk





--
AWAM KA CINEMA
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320 SARYU KUNJ DURAHI KUWA,
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Sunday, April 1, 2012

‘दूरदर्शन उर्दू’ चैनल का सच


दूरदर्शन का डीडी उर्दूचैनल स्थापना के बाद पांच वर्षों में अपना कोई ढांचा तैयार नहीं कर पाया है। मीडिया स्टडीज ग्रुप के एक सर्वे से पता चला है कि देश भर के 80 दूरदर्शन केंद्रों में डीडी उर्दूके लिए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की गई है। इसके अलावा दूरदर्शन के दिल्ली केंद्र में उर्दू चैनल के लिए केवल 6 स्थायी कर्मचारी हैं, उनमें भी चार पद प्रशासनिक हैं। देश भर में दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, कोलकाता, पटना और अहमदाबाद के अलावा दूरदर्शन के 80 केंद्रों से उर्दू चैनल के लिए नियुक्त कर्मचारियों के बाबत सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी गई थी। यह सर्वे मासिक शोध जर्नल जन मीडिया’ (हिंदी) और मास मीडिया’ (अंग्रेजी) ने प्रकाशित किया है, जिसका पहला अंक 2 अप्रैल को जारी किया जाएगा।
मीडिया शोध से जुड़ी संस्था मीडिया स्टडीज ग्रुप ने डीडी उर्दू के उद्देश्यों और उसके अनुपात में मानव संसाधनपर अपने इस सर्वे में पाया कि विशेश भाषाई दर्शक समुदाय के लिए शुरू किए गए इस चैनल के लिए कर्मचारियों की कोई स्थायी नियुक्ति नहीं की गई है। ग्रुप की ओर से शोधकर्ता अवनीश ने देश भर के 87 दूरदर्षन केंद्रों में सूचना अधिकार (आरटीआई) से यह जानकारी प्राप्त की है। आरटीआई से मिली सूचना के अनुसार 80 दूरदर्शन केंद्र, जहां से डीडी उर्दूका प्रसारण होता है, वहां पर इसके लिए न तो कोई पद सृजित किया गया है, ना ही कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है। इन केद्रों पर दूरदर्शन के लिए काम करने वाले कर्मचारी ही डीडी उर्दूका भी काम करते हैं। इन केंद्रों पर उर्दू चैनल के लिए कार्यक्रम बनाने की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली स्थित दूरदर्शन भवन में डीडी उर्दू के लिए 6 स्थायी अधिकारी नियुक्त हैं। इन पदों में एक उप महानिदेशक, एक अनुभाग अधिकारी, एक प्रोग्राम प्रोड्यूसर, एक प्रोड्यूसर, एक एडीपी और एक एडीजी हैं। इसके अलावा दूरदर्शन भवन के डीडी उर्दू अनुभाग में 18 कर्मचारी नियुक्त हैं, जो कि सभी अस्थायी हैं। क्षेत्रीय प्रसारण केंद्रों में नियुक्तियां अस्थायी और आकस्मिक हैं।
दूरदर्शन के लखनऊ केंद्र में डीडी उर्दू के कार्यक्रम बनाने वाले पैनल में 11, हैदराबाद में 29, कोलकाता में 21 और पटना में 6 कर्मचारी हैं। ये सभी अस्थाई या कैजुअल आधार पर काम करते हैं। अहमदाबाद में उर्दू का एक कार्यक्रम अंजुमनप्रसारित होता है, जो दूरदर्शन केंद्र के एक कर्मचारी ईशू देसाई बनाते हैं।
डीडी उर्दू की स्थापना 15 अगस्त 2006 को हुई। एक चैनल के रूप डीडी उर्दू ने 14 नवंबर 2007 से 24 घंटे का प्रसारण शुरू किया। चैनल का उद्देश्य अपने दर्शकों को विरासत, संस्कृति, सूचना, शिक्षा और सामाजिक मुद्दों पर कार्यक्रम मुहैया कराना है। चैनल की स्थापना के समय यह दावा किया गया था कि इससे धीरे-धीरे भुलाई जा रही इस भाषा को फिर से लोकप्रिय करने में मदद मिलेगी। स्थापना के बाद से ये चैनल अभी तक कार्यक्रम निर्माण के लिए अपना ढांचा विकसित नहीं कर सका है। कर्मचारी की नियुक्ति नहीं किये जाने की वजह से इस चैनल को कार्यक्रमों के निर्माण के लिए बाहरी एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। डीडी उर्दू से प्रसारित होने वाली खबरें भी दूरदर्शन से ही ली जाती हैं। उर्दू कार्यक्रमों के लिए किसी नीति का नहीं होना वास्तव में एक ठोस संचार नीति की कमी से जुड़ा है।
चैबीस घंटे का यह चैनल ठोस नीति के अभाव में अपने उद्देश्यों को पूरा कर नहीं कर पा रहा है। मीडिया स्टडीज ग्रुप पहले भी मीडिया से जुड़े मुद्दों पर शोध और सर्वे करता रहा है। इस ग्रुप का मीडिया में काम करने वालों लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन खासा महत्व रहा है।
शोध जर्नल जन मीडियाऔर मास मीडियाका नवान्न (विमोचन) सुप्रीम कोर्ट के चर्चित अधिवक्ता प्रषांत भूशण 2 अप्रैल को दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कालेज में करेंगे। इस मौके पर मीडिया पर शोध की आवश्यकताविषय परिचर्चा भी आयोजित की गई है।

डीडी उर्दू चैनल में कर्मचारियों की स्थिति का ब्यौरा
देशभर के 87 दूरदर्शन केंद्रों ने सूचना उपलब्ध कराई। इन सूचनाओं का विवरण यहां दिया जा रहा है।

1. दिल्ली - प्रसार भारती के कोपरनिकस मार्ग स्थित दूरदर्शन भवन में डीडी उर्दू अनुभाग में कार्यरत कर्मचारियों की सूची
उप महानिदेशक (स्थाई)    1
अनुभाग अधिकारी (स्थाई)   1
प्रोग्राम प्रोड्यूसर (स्थाई)    1
सेवानिवृत्त डीडीपी (अस्थाई)  1
प्रोड्यूसर (स्थाई)          1
एडीपी (स्थाई)       1
एडीजी (स्थाई)            1
वीटी एडीटर (अस्थाई)      1
बीई- प्रथम(अस्थाई)  6
बीई- द्वितीय(अस्थाई) 7
अभिलेखीय सहायक (अस्थाई) 3
पुस्तकालय सहायक (अस्थाई)      1
2. दिल्ली - स्थित आकाशवाणी में उर्दू कार्यक्रमों के लिए नियुक्त कर्मचारियों की सूची
कार्यक्रम अधिकारी         1
प्रसारण अधिकारी (ठेके पर) 1
अवर श्रेणी लिपिक         1
3. दूरदर्शन केंद्र लखनऊ - उर्दू में प्रसारण के लिए पैनल
न्यूज राइटर (आकस्मिक)       5
उर्दू टाइपिस्ट (आकस्मिक)   6
4. दूरदर्शन केंद्र हैदराबाद - उर्दू में प्रसारण के लिए पैनल (उर्दू के लिए कोई विशेष स्टाफ नहीं है)
प्रोगाम प्रोड्यूसर (अस्थाई)   3
न्यूज रीडर (अस्थाई) 13
अनुवादक (अस्थाई)        6
कैलीग्राफर/कंप्यूटर आपरेटर
(अस्थाई)                 7
5. दूरदर्शन केंद्र कोलकाता - सभी कर्मचारी अस्थाई एवं अनौपचारिक आधार पर
प्रोडक्शन असिस्टेंट (अस्थाई) 3
संपादकीय सहायक (अस्थाई) 3
कैलीग्राफर(अस्थाई)        3
ग्राफिक डिजाइनर (अस्थाई) 5
न्यूज रीडर (अस्थाई) 7
6. दूरदर्शन केंद्र पटना- सभी अस्थाई ठेके पर
उर्दू संपादकीय सहयोगी (आकस्मिक)      2
उर्दू कॉपी राइटर (आकस्मिक)      2
उर्दू प्रस्तुति सहायक (आकस्मिक)   1
उर्दू ग्राफिक डिजाइनर (आकस्मिक) 1
7. दूरदर्शन केंद्र अहमदाबाद- उर्दू चैनल के लिए अलग से कोई नियुक्ति नहीं है। उर्दू का एक कार्यक्रम अंजुमनयहां से प्रसारित होता है, जो केंद्र के ही एक कर्मचारी इशू देसाई बनाते हैं। इसके अलावा दूरदर्शन के अन्य 80 केंद्रों से जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार उन केद्रों पर उर्दू चैनल के लिए न तो कोई पद सृजित किया गया है और न ही उर्दू चैनल के लिए कोई नियुक्ति की गई है। इन केंद्रों पर उर्दू चैनल के लिए कोई कार्यक्रम बनाने की व्यवस्था भी नहीं है।

‘दूरदर्शन उर्दू’ चैनल का सच


दूरदर्शन का डीडी उर्दूचैनल स्थापना के बाद पांच वर्षों में अपना कोई ढांचा तैयार नहीं कर पाया है। मीडिया स्टडीज ग्रुप के एक सर्वे से पता चला है कि देश भर के 80 दूरदर्शन केंद्रों में डीडी उर्दूके लिए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की गई है। इसके अलावा दूरदर्शन के दिल्ली केंद्र में उर्दू चैनल के लिए केवल 6 स्थायी कर्मचारी हैं, उनमें भी चार पद प्रशासनिक हैं। देश भर में दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, कोलकाता, पटना और अहमदाबाद के अलावा दूरदर्शन के 80 केंद्रों से उर्दू चैनल के लिए नियुक्त कर्मचारियों के बाबत सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी गई थी। यह सर्वे मासिक शोध जर्नल जन मीडिया’ (हिंदी) और मास मीडिया’ (अंग्रेजी) ने प्रकाशित किया है, जिसका पहला अंक 2 अप्रैल को जारी किया जाएगा।
मीडिया शोध से जुड़ी संस्था मीडिया स्टडीज ग्रुप ने डीडी उर्दू के उद्देश्यों और उसके अनुपात में मानव संसाधनपर अपने इस सर्वे में पाया कि विशेश भाषाई दर्शक समुदाय के लिए शुरू किए गए इस चैनल के लिए कर्मचारियों की कोई स्थायी नियुक्ति नहीं की गई है। ग्रुप की ओर से शोधकर्ता अवनीश ने देश भर के 87 दूरदर्षन केंद्रों में सूचना अधिकार (आरटीआई) से यह जानकारी प्राप्त की है। आरटीआई से मिली सूचना के अनुसार 80 दूरदर्शन केंद्र, जहां से डीडी उर्दूका प्रसारण होता है, वहां पर इसके लिए न तो कोई पद सृजित किया गया है, ना ही कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है। इन केद्रों पर दूरदर्शन के लिए काम करने वाले कर्मचारी ही डीडी उर्दूका भी काम करते हैं। इन केंद्रों पर उर्दू चैनल के लिए कार्यक्रम बनाने की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली स्थित दूरदर्शन भवन में डीडी उर्दू के लिए 6 स्थायी अधिकारी नियुक्त हैं। इन पदों में एक उप महानिदेशक, एक अनुभाग अधिकारी, एक प्रोग्राम प्रोड्यूसर, एक प्रोड्यूसर, एक एडीपी और एक एडीजी हैं। इसके अलावा दूरदर्शन भवन के डीडी उर्दू अनुभाग में 18 कर्मचारी नियुक्त हैं, जो कि सभी अस्थायी हैं। क्षेत्रीय प्रसारण केंद्रों में नियुक्तियां अस्थायी और आकस्मिक हैं।
दूरदर्शन के लखनऊ केंद्र में डीडी उर्दू के कार्यक्रम बनाने वाले पैनल में 11, हैदराबाद में 29, कोलकाता में 21 और पटना में 6 कर्मचारी हैं। ये सभी अस्थाई या कैजुअल आधार पर काम करते हैं। अहमदाबाद में उर्दू का एक कार्यक्रम अंजुमनप्रसारित होता है, जो दूरदर्शन केंद्र के एक कर्मचारी ईशू देसाई बनाते हैं।
डीडी उर्दू की स्थापना 15 अगस्त 2006 को हुई। एक चैनल के रूप डीडी उर्दू ने 14 नवंबर 2007 से 24 घंटे का प्रसारण शुरू किया। चैनल का उद्देश्य अपने दर्शकों को विरासत, संस्कृति, सूचना, शिक्षा और सामाजिक मुद्दों पर कार्यक्रम मुहैया कराना है। चैनल की स्थापना के समय यह दावा किया गया था कि इससे धीरे-धीरे भुलाई जा रही इस भाषा को फिर से लोकप्रिय करने में मदद मिलेगी। स्थापना के बाद से ये चैनल अभी तक कार्यक्रम निर्माण के लिए अपना ढांचा विकसित नहीं कर सका है। कर्मचारी की नियुक्ति नहीं किये जाने की वजह से इस चैनल को कार्यक्रमों के निर्माण के लिए बाहरी एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। डीडी उर्दू से प्रसारित होने वाली खबरें भी दूरदर्शन से ही ली जाती हैं। उर्दू कार्यक्रमों के लिए किसी नीति का नहीं होना वास्तव में एक ठोस संचार नीति की कमी से जुड़ा है।
चैबीस घंटे का यह चैनल ठोस नीति के अभाव में अपने उद्देश्यों को पूरा कर नहीं कर पा रहा है। मीडिया स्टडीज ग्रुप पहले भी मीडिया से जुड़े मुद्दों पर शोध और सर्वे करता रहा है। इस ग्रुप का मीडिया में काम करने वालों लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन खासा महत्व रहा है।
शोध जर्नल जन मीडियाऔर मास मीडियाका नवान्न (विमोचन) सुप्रीम कोर्ट के चर्चित अधिवक्ता प्रषांत भूशण 2 अप्रैल को दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कालेज में करेंगे। इस मौके पर मीडिया पर शोध की आवश्यकताविषय परिचर्चा भी आयोजित की गई है।

डीडी उर्दू चैनल में कर्मचारियों की स्थिति का ब्यौरा
देशभर के 87 दूरदर्शन केंद्रों ने सूचना उपलब्ध कराई। इन सूचनाओं का विवरण यहां दिया जा रहा है।

1. दिल्ली - प्रसार भारती के कोपरनिकस मार्ग स्थित दूरदर्शन भवन में डीडी उर्दू अनुभाग में कार्यरत कर्मचारियों की सूची
उप महानिदेशक (स्थाई)   1
अनुभाग अधिकारी (स्थाई) 1
प्रोग्राम प्रोड्यूसर (स्थाई)   1
सेवानिवृत्त डीडीपी (अस्थाई) 1
प्रोड्यूसर (स्थाई)         1
एडीपी (स्थाई)      1
एडीजी (स्थाई)      1
वीटी एडीटर (अस्थाई)    1
बीई- प्रथम(अस्थाई)  6
बीई- द्वितीय(अस्थाई) 7
अभिलेखीय सहायक (अस्थाई) 3
पुस्तकालय सहायक (अस्थाई)   1
2. दिल्ली - स्थित आकाशवाणी में उर्दू कार्यक्रमों के लिए नियुक्त कर्मचारियों की सूची
कार्यक्रम अधिकारी        1
प्रसारण अधिकारी (ठेके पर)    1
अवर श्रेणी लिपिक        1
3. दूरदर्शन केंद्र लखनऊ - उर्दू में प्रसारण के लिए पैनल
न्यूज राइटर (आकस्मिक)      5
उर्दू टाइपिस्ट (आकस्मिक) 6
4. दूरदर्शन केंद्र हैदराबाद - उर्दू में प्रसारण के लिए पैनल (उर्दू के लिए कोई विशेष स्टाफ नहीं है)
प्रोगाम प्रोड्यूसर (अस्थाई) 3
न्यूज रीडर (अस्थाई) 13
अनुवादक (अस्थाई)       6
कैलीग्राफर/कंप्यूटर आपरेटर
(अस्थाई)           7
5. दूरदर्शन केंद्र कोलकाता - सभी कर्मचारी अस्थाई एवं अनौपचारिक आधार पर
प्रोडक्शन असिस्टेंट (अस्थाई)    3
संपादकीय सहायक (अस्थाई)    3
कैलीग्राफर(अस्थाई)       3
ग्राफिक डिजाइनर (अस्थाई) 5
न्यूज रीडर (अस्थाई) 7
6. दूरदर्शन केंद्र पटना- सभी अस्थाई ठेके पर
उर्दू संपादकीय सहयोगी (आकस्मिक)  2
उर्दू कॉपी राइटर (आकस्मिक)   2
उर्दू प्रस्तुति सहायक (आकस्मिक) 1
उर्दू ग्राफिक डिजाइनर (आकस्मिक)   1
7. दूरदर्शन केंद्र अहमदाबाद- उर्दू चैनल के लिए अलग से कोई नियुक्ति नहीं है। उर्दू का एक कार्यक्रम अंजुमनयहां से प्रसारित होता है, जो केंद्र के ही एक कर्मचारी इशू देसाई बनाते हैं। इसके अलावा दूरदर्शन के अन्य 80 केंद्रों से जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार उन केद्रों पर उर्दू चैनल के लिए न तो कोई पद सृजित किया गया है और न ही उर्दू चैनल के लिए कोई नियुक्ति की गई है। इन केंद्रों पर उर्दू चैनल के लिए कोई कार्यक्रम बनाने की व्यवस्था भी नहीं है।

Friday, January 20, 2012

कॉरपोरेट प्रायोजित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के खिलाफ एक अपील

पिछले साल की तरह इस साल भी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों और प्रतिभागियों ने बरबाद हो रहे पर्यावरण, मानवाधिकारों के घिनौने उल्लंघन और इस आयोजन के कई प्रायोजकों द्वारा अंजाम दिए जा रहे भ्रष्टाचार के प्रति निंदनीय उदासीनता दिखाई है। 2011 में जब इन बातों पर चिंता व्यक्त करते हुए बयान दिए गए, तब फेस्टिवल-निदेशकों ने कहा था कि पहले किसी ने इस ओर हमारा ध्यान नहीं दिलाया था और अगर ये तथ्य सामने लाये जायेंगे तब हम ज़रूर उन पर ध्यान देंगे, लेकिन 2012 में भी उन्होंने ऐसा नहीं किया।  


फेस्टिवल के प्रायोजकों में से एक, बैंक ऑफ अमेरिका ने दिसंबर 2010 में यह घोषणा की थी कि वह विकिलीक्स को दान देने में अपनी सुविधाओं का उपयोग नहीं करने देगा। बैंक का बयान था कि 'बैंक मास्टरकार्ड, पेपाल, वीसा और अन्य के निर्णय को समर्थन करता है और वह विकिलीक्स की मदद के लिये किसी भी लेन-देन को रोकेगा' क्या यह बस संयोग है कि रिलायंस उद्योग के मुकेश अम्बानी इस बैंक के निदेशकों में से हैं? फेस्टिवल में शामिल हो रहे लेखक और कवि क्या ऐसी हरकतों का समर्थन करते हैं? यह दुख की बात है कि विकिलीक्स की प्रशंसा करने वाले कुछ प्रतिष्ठित प्रकाशन और समाचार-पत्र भी इस बैंक के साथ इस आयोजन के सह-प्रायोजक हैं।   

अमेरिका और इज़रायल जैसी वैश्विक शक्तियों के रवैये को दरकिनार करते हुए मई 2007 से लागू सांस्कृतिक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा कहती है कि शब्दों और चित्रों के माध्यम से विचारों के खुले आदान-प्रदान के लिये आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय कदम उठाये जाने चाहिए। विभिन्न संस्कृतियों को स्वयं को अभिव्यक्त करने और आने-जाने के लिये निर्बाध वातावरण की आवश्यकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, माध्यमों की बहुलता, बहुभाषात्मकता, कला तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान (डिजिटल स्वरूप सहित) तक समान पहुंच तथा अभिव्यक्ति और प्रसार के साधनों तक सभी संस्कृतियों की पहुंच ही सांस्कृतिक विविधता की गारंटी है।   

यूनेस्को द्वारा 1980 में प्रकाशित मैकब्राइड रिपोर्ट में भी कहा गया है कि एक नई अंतर्राष्ट्रीय सूचना और संचार व्यवस्था की आवश्यकता है जिसमें इन्टरनेट के माध्यम से सिमटती भौगोलिक-राजनीतिक सीमाओं की स्थिति में एकतरफा सूचनाओं का खंडन किया जा सके और मानस-पटल को विस्तार दिया जा सके।

याद करें कि 27 जनवरी 1948 को पारित अमेरिकी सूचना और शैक्षणिक आदान-प्रदान कानून में कहा गया है कि 'सत्य एक शक्तिशाली हथियार हो सकता है' जुलाई 2010 में अमेरिकी विदेशी सम्बन्ध सत्यापन कानून 1972 में किये गए संशोधन में अमेरिका ने अमेरिका, उसके लोगों और उसकी नीतियों से संबंधित वैसी किसी भी सूचना के अमेरिका की सीमा के अन्दर वितरित किए जाने पर पाबंदी लगा दी गयी है जिसे अमेरिका ने अपने राजनीतिक और रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये विदेश में बांटने के लिये तैयार किया हो। इस संशोधन से हमें सीखने की ज़रूरत है और इससे यह भी पता चलता है कि अमेरिकी सरकार के गैर-अमेरिकी नागरिकों से स्वस्थ सम्बन्ध नहीं हैं।  

इस आयोजन को अमेरिकी सरकार की संस्था अमेरिकन सेंटर का सहयोग प्राप्त है। यह सवाल तो पूछा जाना चाहिए कि दुनिया के 132  देशों में 8000 से अधिक परमाणु हथियारों से लैस 702 अमेरिकी सैनिक ठिकाने क्यों बने हुए हैं?

हम कोका कोला द्वारा इस आयोजन के प्रायोजित होने के विरुद्ध इसलिए हैं क्योंकि इस कंपनी ने केरल के प्लाचीमाड़ा और राजस्थान के कला डेरा सहित 52 सयंत्रों द्वारा भूजल का भयानक दोहन किया है जिस कारण इन संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों को पानी के लिये अपने क्षेत्र से बाहर के साधनों पर आश्रित होना पड़ा है।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की एक प्रायोजक रिओ टिंटो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी खनन कंपनी है जिसका इतिहास फासीवादी और नस्लभेदी सरकारों से गठजोड़ का रहा है और इसके विरुद्ध मानवीय, श्रमिक और पर्यावरण से संबंधित अधिकारों के हनन के असंख्य मामले हैं।

केन्द्रीय सतर्कता आयोग की जांच के अनुसार इस आयोजन की मुख्य प्रायोजक डीएससी लिमिटेड को घोटालों से भरे कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के दौरान 23 प्रतिशत अधिक दर पर ठेके दिए गए।

हमें ऐसा लगता है कि ऐसी ताकतें साहित्यकारों को अपने साथ जोड़कर एक आभासी सच गढ़ना चाहती हैं ताकि उनकी ताकत बनी रहे. ऐसे प्रायोजकों की मिलीभगत से वह वर्तमान स्थिति बरकरार रहती है जिसमें लेखकों, कवियों और कलाकारों की रचनात्मक स्वतंत्रता पर अंकुश होता है।

हमारा मानना है कि ऐसे अनैतिक और बेईमान धंधेबाजों द्वारा प्रायोजित साहित्यिक आयोजन  एक फील गुड तमाशे के द्वारा 'सम्मोहन की कोशिश' है।  

हम संवेदनात्मक और बौद्धिक तौर पर वर्तमान और भावी पीढ़ी पर पूर्ण रूप से हावी होने के षड्यंत्र को लेकर चिंतित हैं।  

हम जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शामिल होने का विचार रखने वाले लेखकों, कवियों और कलाकारों से आग्रह करते हैं कि वे कॉरपोरेट अपराध, जनमत बनाने के षड्यंत्रों, और मानवता के ख़िलाफ़ राज्य की हरकतों का विरोध करें तथा ऐसे दागी प्रायोजकों वाले आयोजन में हिस्सा न लें।

हस्ताक्षर

#गोपाल कृष्ण, सिटिज़न फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज़ 

Mb: 9818089660, Email:krishna1715@gmail.com

##प्रकाश के. रे, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय शोध-छात्र संगठन

Mb: 9873313315, E-mail-pkray11@gmail.com

###अभिषेक श्रीवास्‍तव, स्‍वतंत्र पत्रकार

Mb: 8800114126, E-mail-guru.abhishek@gmail.com