- बादाम मज़दूरों की हड़ताल चौथे दिन भी जारी,
- दिल्ली का बादाम संसाधन उद्योग जाम
19 दिसम्बर, दिल्ली। करावलनगर के बादाम मज़दूर यूनियन के गिरफ्तार नेताओं आशीष कुमार सिंह, कुणाल जैन और प्रेमप्रकाश यादव शनिवार को जमानत पर रिहा हो गए. 17 दिसम्बर की सुबह बादाम के गोदाम मालिकों और उनके गुण्डों ने महिला मज़दूरों पर और यूनियन के सदस्यों पर लाठियों-डण्डों से जानलेवा हमला किया और इसमें कई महिला मज़दूर और यूनियन कार्यकर्ता गम्भीर रूप से घायल हो गये। आत्मरक्षा में मज़दूरों ने गुण्डों पर पथराव शुरू किया जिसमें मालिकों के करीब 4 लठैत घायल हो गये। इसके बाद पुलिस ने दोनों पक्षों के कुछ लोगों को हिरासत में लेकर उनका बयान लिया। लेकिन मालिकों और उनके गुण्डों पर पुलिस ने कोई भी कार्रवाई नहीं की जबकि यूनियन के कार्यकर्ताओं पर धारा 107 व धारा 151 के तहत मामला दर्ज़ कर लिया।
17 दिसम्बर को पुलिस ने बिना कोई चिकित्सीय सहायता प्रदान किये मज़दूर नेताओं को घायल हालत में ही गोकलपुरी थाने में लाॅक-अप में बन्द कर दिया। ज्ञात हो, कि यह मामला करावलनगर थाने के अन्तर्गत आता है लेकिन मज़दूरों से भयाक्रान्त पुलिस प्रशासन ने इन मज़दूर नेताओं को करावलनगर या खजूरी थाने में नहीं बन्द किया। जाहिर है कि पुलिस पूरी तरह मालिकों की ओर से कार्रवाई कर रही है। मालिकों को किराए के गुण्डे रखने की कोई ज़रूरत नहीं थी।
इस बीच करावलनगर इलाके में चौथे दिन भी हज़ारों की संख्या में मज़दूर हड़ताल स्थल पर मौजूद रहे। हड़ताल के जारी रहने से करावलनगर का पूरा बादाम संसाधन उद्योग ठप्प पड़ गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के नवीन ने कहा कि करावलनगर पुलिस थाने के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और मज़दूरों की ओर से प्राथमिकी दर्ज़ न कराए जाने के कारण यूनियन सीधे पुलिस उपायुक्त, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पास शिकायत दर्ज़ कराएगी और अगर तब भी कार्रवाई नहीं होती है तो फिर हमारे पास अदालत जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा। ग़ौरतलब है कि बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में पिछले एक वर्ष से बादाम मज़दूर अपने कानूनी हक़ों की माँग कर रहे हैं और साथ ही बादाम संसाधन उद्योग को सरकार द्वारा औपचारिक दर्ज़ा दिये जाने की माँग कर रहे हैं। फिलहाल, सभी बादाम गोदाम मालिक गैर-कानूनी ढंग से बिना किसी सरकारी लाईसेंस या मान्यता के ठेके पर मज़दूरों से अपने गोदामों में काम करवा रहे हैं। इसमें बड़े पैमाने पर महिला मज़दूर हैं लेकिन उनके लिए शौचालय या शिशु घर जैसी कोई सुविधा नहीं है। बादाम मज़दूरों को तेज़ाब में डाल कर सुखाए गए बादामों को हाथों, पैरों और दांतों से तोड़ना पड़ता है। उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं हैं और उन्हें टी.बी., खांसी, आदि जैसे रोग आम तौर पर होते रहते हैं। महिला मज़दूरों के बच्चे भी काफ़ी कम उम्र में ही जानलेवा बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। बादाम मज़दूर यूनियन इन मज़दूरों के लिए बेहतर कार्य स्थितियों की भी माँग कर रही है। लेकिन मालिक और ठेकेदार पुलिस प्रशासन और स्थानीय नेताओं और गुण्डों के बल पर अपनी मनमानी और गुण्डागर्दी चला रहे है। बादाम मज़दूर यूनियन के योगेश ने कहा कि लेकिन अब वे दिन लद गये हैं जब मज़दूर गुलामों की तरह चुपचाप खटते रहते थे और कोई आवाज़ नहीं उठाते थे। वे एक यूनियन के रूप में संगठित हो चुके हैं और अपने कानूनी हक़ों को जीतने से नीचे वे किसी जीत पर नहीं रुकेंगे।
बादाम मज़दूर यूनियन के आज रिहा हुए संयोजक आशीष कुमार सिंह ने कहा कि बादाम के ठेकेदार बुरी तरह से डर गये हैं। पुलिस को अपने साथ मिलाकर और गुण्डों के बल पर निहत्थे मज़दूरों पर कायराना हमला कराकर उन्होंने साबित कर दिया है कि वे झुण्ड में निहत्थे महिलाओं और बच्चों पर ही अपने पौरुष का प्रदर्शन कर सकते हैं। लेकिन महिला मज़दूरों ने उनके हमले का मुँहतोड़ जवाब देकर साबित कर दिया है कि वे ऐसे किसी भी नापाक हमले का जवाब उसी भाषा में दे सकते हैं। अब वे दिन गये जब मज़दूर चुपचाप मालिकों की मार और गाली-गलौच को बर्दाश्त करते थे। मज़दूर अपनी एकता के बल पर बिकी हुई पुलिस और मालिकों के गुण्डों, दोनों से टकराने की ताक़त रखते हैं। इस कायराना हमले ने मज़दूरों के हौसले को तोड़ने की बजाय उन्हें और बुलन्द कर दिया है। यह अकारण नहीं है कि करीब 15 फीसदी मज़दूर जो भय के कारण हड़ताल में शामिल नहीं थे, मज़दूर नेताओं की गिरतारी के बाद वे भी हड़ताल में शामिल हो चुके हैं और उन्होंने मालिकों की मुनाफे की मशीनरी का चक्का पूरी तरह जाम कर दिया है।
मीडिया ने किया 'ब्लैक आउट'
करावलनगर इलाके में बादाम मजदूरों की हड़ताल सम्बन्धी ख़बरों को दिल्ली की मीडिया ने ब्लैक आउट कर दिया है. आन्दोलन की खबरों को स्थानीय अख़बारों और न्यूज चैनलों में कोई तरजीह नहीं मिल रही, जबकि इस उद्योग से हजारों मजदूरों की रोजी-रोटी जुडी है. मीडिया संस्थान बहुराष्ट्रीय बादाम कंपनियों के दबाव में मजदूरों की खबरों को लगातार नजरंदाज कर रही हैं.
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) ने मुख्य धारा की मीडिया के इस मजदूर विरोधी रुख के बरखिलाफ इस पूरे मामले की जाँच करने का निर्णय लिया है. जेयूसीएस के साथी जल्द ही इस मामले की जाँच कर अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे.
Wednesday, February 10, 2010
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