Saturday, February 13, 2010

शाहिद आजमी की नहीं, न्याय व अभिव्यक्ति के पक्षधरता की हत्या

नई दिल्ली, 13 फरवरी।
जर्नलिस्ट यूनियन फाॅर सिविल सोसाटयी (जेयूसीएस) मुंबई में शुक्रवार को एडवोकेट शाहिद आजमी की गोली मार कर की गई हत्या की घटना की कड़ी निदंा करता है। शाहिद आजमी उन गिने चुने वकीलों में से थे, जो देष में आतंकवादी होने के शक में पकड़े गए लोगों का मुकदमा लड़ने का साहस जुटा पाते हैं। जेयूसीएस शाहिद आजमी की हत्या को अभिव्यक्ति व विचारों की स्वतन्त्रता तथा न्याय के पक्ष में खड़े लोगों पर की हत्या मानते हुए इसके लिए सरकार को दोषी मानती है।
शाहिद की जिस प्रकार से हत्या की गई है, उससे पता चलता है कि देश में कुछ लोग हैं जो न्याय व लोकतंत्र का जाप करते हैं लेकिन वास्तव में वह उनके खिलाफ हैं। शाहिद आजमी को सुरक्षा न दे पाने में सरकार की विफलता यह साबित करती है कि सरकार भी नहीं चाहती की ‘न्याय व स्वतंत्रता के पक्षधर लोग उसके कामों में टांग अड़ाए।’ आतंकवाद के नाम पर सरकार व मुख्य धारा की मीडिया द्वारा बदनाम कर दिए गए आजमगढ़ से आने वाले शाहिद का सत्ता से संघर्श का रिश्ता पुराना रहा है। 12-14 वर्ष की उम्र में उन्हें टाडा में केवल इस लिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि कश्मीर से पकड़े गए कुछ लोगों ने सुरक्षा एजेंसियों को दिए गए बयान में उनका भी नाम लिया था। करीब पांच वर्षों तक जेल में रहने और वहीं से अपनी पढ़ाई जारी रखने वाले शाहिद ने वहां से निकलने के बाद एलएलबी की डिग्री ली और राजकीय आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। जेल से निकलने के बाद भी शाहिद उन लोगों के पक्ष में खड़े हुए जो उनकी तरह ‘न्याय’ व राजकीय आतंकवाद के सताए थे। शाहिद ने अपने संघर्षों से सीखते हुए आतंकवादी बताकर पकड़े गए कई लड़कों का मुकदमा लड़ा और उन्हें न्याय दिलाने में मदद की। फिलहाल वह मालेगांव बम विस्फोट व मुंबई में ब्लाॅस्ट के सिलसिले में पकड़े गए फहीम अंसारी का केस लड़ रहे थे। शाहिद उन आठ वकीलों के पैनल में भी शामिल थे जो बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ कांड का केस लड़ रहे हैं।
आपको याद हो तो हाल के वर्षों में बम विस्फोट या आतंकी घटना के बाद उसके आरोप में पकड़े गए लोगों के खिलाफ मीडिया के फैलाए उन्माद में राज्यों की बार काउंसिलों ने कई आरोपियों का केस लड़ने से मना कर दिया। बार काउंसिलों के इन तरह के निर्णय के लिए जितने जिम्मेदार उनके आका हैं उतनी ही जिम्मेदार मुख्यधारा की प्रिंट व इलेक्ट्ाॅनिक मीडिया भी है। विस्फोटों के बाद मीडिया अपनी जहरीली रिपोर्टिंग से जो जन उन्माद पैदा करती है उसमें बार काउंसिलों के ऐसे निर्णयों को भी आम जन का समर्थन मिल जाता है। शाहिद आजमी मीडिया के फैलाए इस उन्माद व बार काउंसिलों के बेतुके निर्णयों से आगे सोचने वाले वकील थे। उन्होंने बार काउंसिल के ऐसे फैसलों की परवाह न करते हुए आतंक बताए लड़कों को न्याय दिलाने जैसा खतरनाक काम अपने हाथों में लिया और अन्ततः उसके के चलते मारे भी गए।
जर्नलिस्ट यूनियन फाॅर सिविल सोसाटयी (जेयूसीएस) मांग करती है कि शाहिद आजमी के हत्या की निष्पक्षता व स्वतंत्र जांच कराई जाए। शाहिद जिस तरह के केसों को लड़ रहे थे, उसमें अगर वह उन कथित आंतकियों को छुड़ाने में कामयाब हो जाते तो यह एक तरह से सरकार की हार होती है। साथ ही साथ उनकी हत्या से हिंदूवादी संगठनों को भी उतना ही फायदा होता। क्योंकि उन्होंने प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ भी अदालत में एक मामला दायर कर रखा था। शाहिद के हत्यारों में प्रारम्भिक तौर पर मुंबई अंडरवल्र्ड के कुछ अपराधियों का नाम सामने आ रहा है। लेकिन वास्तव में अंडरवल्र्ड को शाहिद की हत्या से कोई फायदा नहीं होने वाला। उनकी हत्या के पीछे राजनैतिक कारण हो सकते है। हम मांग करते हैं कि शाहिद की हत्या में कांग्रेस व अन्य हिंदूवादी संगठनों के भूमिका की भी जांच कराई जाए। जेयूसीएस यह भी मांग करता है देश में मानवाधिकारों, न्याय व लोकतंत्र के पक्ष में खड़े लोगों के सुरक्षा की गारन्टी सुनिष्चित करे। और ऐसे लोगों के खिलाफ चल रहे सरकार व गैर सरकारी दमन पर रोक लगाए।

- द्वारा जारी
विजय प्रताप, राजीव यादव, शाहनवाज आलम, अवनीश राय, ऋषि कुमार सिंह, लक्ष्मण प्रसाद, तारीक शाफीक व मसिहुद्दीन संजरी

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