Wednesday, February 17, 2010

सीमा आज़ाद की पत्रिका

अंबरीश कुमार

लखनऊ,(जनसत्ता)। माओवादी साहित्य रखने के आरोप में गिरफ्तार पत्रकार और पीयूसीएल की पदाधिकारी सीमा आज़ाद ने आखिर क्या लिखा-पढ़ा जिसके चलते वे आज जेल में हैं । उनकी जमानत की अर्जी निचली अदालत से खारिज हो चुकी है और सेशन कोर्ट में सुनवाई अगले हफ्ते होनी है । आज उनकी पत्रिका दस्तक का वह अंक मिला जिसमें माओवाद से सम्बंधित कुछ लेख हैं । एसटीएफ उनकी इस पत्रिका में छपी कुछ सामग्री को भी आपत्तिजनक मानती है । इस पत्रिका के सम्पादक मंडल में पांच लोग हैं । जिसमें दो शिक्षक, दो पत्रकार और एक शोध छात्र शामिल है । सीमा आज़ाद इससे पहले कानपुर के बदहाल होते उद्योगों और गंगा एक्सप्रेस वे आदि पर विस्तार से लिख चुकी हैं ।
सीमा आज़ाद ने दस्तक पत्रिका के नवम्बर-दिसंबर २००९ के अंक में माओवाद से सम्बंधित कुछ सामग्री प्रकाशित की । पीयूसीएल की महासचिव वंदना मिश्रा ने कहा-'दस्तक पत्रिका में कोई भी लेख कहीं से भी आपत्तिजनक नहीं है । इस प्रकार के लेख देश की हज़ारों पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं ।' दस्तक के इस अंक में सीमा आज़ाद के दो लेख हैं। जिसमे से एक का शीर्षक है- 'माओवाद पर हमले की तैयारी' और दूसरे का ओबामा और विश्व शान्ति । पहले लेख में माओवाद और माओवादियों के बारे में सूचनापरक तथ्य दिए गए हैं । इसकी बानगी देखने वाली है। माओवादी कौन हैं और क्या चाहते हैं ? उप शीर्षक के साथ लिखा गया है-'संक्षेप सार रूप में समाजवादी व्यवस्था परिवर्तन का दर्शन माओवाद है और इसे मानने वाले लोग माओवादी हैं। माओवादियों का मानना है कि १९४७ में भारत आज़ाद नहीं हुआ बल्कि अब भी साम्राज्यवादियों की गिरफ्त में है , भारत का सामंती व पूंजीपति वर्ग उसका देसी मुखौटा भर है । जिसके माध्यम से वे यहाँ के संसाधनों की लूट को अंजाम दे रहे हैं ।' इसी लेख में आगे लिखा गया है-' माओवादियों की सोच से सरकार को कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि चुनावी रास्ते से संसद में पहुँचने वाले वामपंथी भी लगभग ऐसा ही कहते हैं। समस्या यह है की माओवादी इस लूट को रोकने की गतिविधि में भी लगे हैं ।' आगे यह भी बताया गया है कि माओवादी इसके लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। जिसमे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के संसाधनों को विस्फोट से उड़ाने से लेकर बारूदी सुरंग से हमला करने की रणनीति की जानकारी दी गई है ।
पत्रिका में कोबाद गांधी पर एक बॉक्स दिया गया है। इसके अलावा गोरखपुर में मजदूर आन्दोलन का दमन शीर्षक से एक रपट और वरवर तुम्हारी जेल और हम औरतों की कारा शीर्षक से क्रांतिकारी कवी वरवर राव की जेल डायरी पर सामग्री दी गई है । पत्रकार वन्दना मिश्रा ने कहा-सीमा आज़ाद के लेखन में ऐसा कुछ नहीं है जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाय । सही बात तो यह है कि अवैध खनन का मामला उठाने पर उन्हें फर्जी मामले में फंसा कर जेल भेजा गया । दूसरी तरफ करीब सात-आठ सालों से सीमा आज़ाद को करीब से देखने वाले पीयूसीएल के संगठन सचिव शाहनवाज़ आलम ने कहा-'हम लोग सीमा आज़ाद को इलाहबाद विश्वविद्यालय के समय से देख रहे हैं। उन्होंने मजदूरों और अन्य मुद्दों को लेकर काफी गंभीर काम किया है । जहाँ तक दस्तक की बात है तो इसे माओवादी साहित्य किसी तरह नहीं माना जा सकता । तृणमूल कांग्रेस के सांसद कबीर सुमन सार्वजनिक रूप से माओवाद में अपनी आस्था दिखाते हैं और संसद में भी बैठते हैं । अगर माओवाद विचारधारा के रूप में खतरनाक है तो उनपर भी कार्यवाही होनी चाहिए । पत्रिका में कोबाद गांधी का जिक्र किया गया है, यह भी जानना चाहिए की उन्होंने बीबीसी को इंटरव्यू दिया था ।'
गौरतलब है की एसटीएफ के एसएसपी ने दावा किया था कि दस्तक पत्रिका में भी कुछ सामग्री आपत्तिजनक है । हालांकि उन्होंने यह नहीं साफ़ किया कि आपत्तिजनक क्या है ।

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