नई दिल्ली, 9 फ़रवरी

सीमा आजाद ने सोनभद्र में कमलेश चौधरी के पुलिस के फर्जी मुठभेड़ और बसपा के दबंग नेताओं के खिलाफ आवाज उठाई थी। इसके अलावा कौशांबी और इलाहाबाद में खनन माफिया के खिलाफ भी सीमा ने अपनी आवाज मुखर की थी। हमें घोर आश्चर्य है कि मानवाधिकारों और लोगों के सवैंधानिक अधिकारों की आवाज को उठाने वाली एक पत्रकार को पुलिस नक्सली बताकर हिरासत में ले लेती है। प्रदेश पुलिस की यह कार्रवाई असवैंधानिक, सेवा शर्तों के विपरीत तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है।
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी मांग करता है कि पत्रकार और संपादक सीमा आजाद को तुरंत रिहा किया जाए। इसके अलावा पुलिस यह भी साफ करे कि 'नक्सली साहित्य' क्या है। वे कौन से आधार हैं जिन पर पुलिस किसी भी किताब को तुरंत देखकर ही उसे नक्सली साहित्य बता सकती है, और किसी साहित्य को पढ़ने या उसे अपने पास रखने के आधार पर किसी की गिरफ्तारी कैसे की जा सकती है ?
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) की ओर से
अवनीश राय, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, शाहनवाज आलम, राजीव यादव, अरूण उरांव, चन्द्रिका, लक्ष्मण प्रसाद, विवेक, अनिल, देवाशीष प्रसून, सौम्या झा, विनय जायसवाल, नवीन कुमार सिंह, शालिनी बाजपेई, प्रबुद्ध गौतम, पीयूष तिवारी, पूर्णिमा उरांव, लक्ष्मण प्रसाद, अर्चना महतो, पंकज उपाध्याय, अभिषेक कुमार सिंह, राघवेन्द्र प्रताप सिंह,राकेश कुमार द्वारा जारी .
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